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Hindi News ओपिनियन नश्तरजो मांगोगे, नहीं मिलेगा

जो मांगोगे, नहीं मिलेगा

हिंदी अखबारों और पत्रिकाओं के किसी कोने में किरण बिखेरती अंगूठी के साथ दावा करता आज भी एक विज्ञापन नजर आता है ‘जो मांगोगे, वही मिलेगा’। मांगना एक याचक भाव दर्शाती क्रिया है। कुछ देने की...

जो मांगोगे, नहीं मिलेगा
अशोक सण्डThu, 30 Aug 2018 09:53 PM
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हिंदी अखबारों और पत्रिकाओं के किसी कोने में किरण बिखेरती अंगूठी के साथ दावा करता आज भी एक विज्ञापन नजर आता है ‘जो मांगोगे, वही मिलेगा’। मांगना एक याचक भाव दर्शाती क्रिया है। कुछ देने की प्रार्थना करना। भगवान या अपने इष्ट देव से मांगने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है। जफर साब भी चार दिन मांगकर ही लाए थे। मांग का एक और अर्थ भी होता है। बालों को संवारकर बनाई रेखा को भी मांग कहते हैं। जिन बेचारों के सिर पर बाल ही न बचे हों, उनकी कोई ‘मांग’ नहीं होती। 

मांगना भले सरल क्रिया हो, लेकिन आपूर्ति उतनी ही जटिल और तहस-नहस करने वाली होती है। जनता जो मांगे, उसे दिलाने वाली अंगूठी किसी भी बाबा के पास नहीं। बुनियादी चीजें तक आसानी से मयस्सर नहीं। उधर भारतीय राजनीति में जिस नई मांग का पिछले कुछ वर्षों में उदय हुआ है, वह है इस्तीफे की मांग। जिस बहादुर ‘लाल’ को इस्तीफा देना होता था, वह मांग का मुखापेक्षी नहीं होता था। आचरण और वक्तव्यों को लेकर माननीयों से माफी मांगने की कांव-कांव तो अब आए दिन सुनाई पड़ती है। पिछले दिनों एक माफी नरेश ने अपनी करतूतों की माफी मांगकर कोर्ट केस रफा-दफा किए हों, तथापि उन्हीं के दल में इस्तीफे दिए भी जाएं, तो मंजूर नहीं होते। 

मांग को लेकर याद आता है कि कैकेयी ने दशरथ से वर ‘मांगे’, तो प्रभु को लीला करनी पड़ी। गब्बर ने ठाकुर से हाथ मांगे, तो शोले भड़क उठे। राजनीति की ठीक समझ बंदे को कभी नहीं रही। अल्प ज्ञान से चिंतन उपज रहा है कि जो सत्ता में है, जो मांगोगे वाली तिलिस्मी अंगूठी उसी के पास है। वही पावर हाउस है, जिसमें दाखिल होने के लिए दूसरा मिस्त्री देश-विदेश भ्रमण कर उसका बंबा बिजली काट खुद उसमें काबिज होने के लिए बेचैन है। कहा भी गया है- जबरदस्ती मत मांगना जिंदगी में किसी का साथ, कोई खुद चलके आए उसकी खुशी कुछ और। 

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