संवेदनशील उर्फ गिरा हुआ
मुंबई शेयर बाजार का संवेदनशील सूचकांक हड़कंप मचा रहा है। कभी 1000 बिंदु गिर जाता है, कभी 500 बिंदु गिर जाता है। संवेदनशील का इस समाज में गिरना तय है वैसे, पर यह सूचकांक उठ भी जाता है, यानी यह फर्जी...
मुंबई शेयर बाजार का संवेदनशील सूचकांक हड़कंप मचा रहा है। कभी 1000 बिंदु गिर जाता है, कभी 500 बिंदु गिर जाता है। संवेदनशील का इस समाज में गिरना तय है वैसे, पर यह सूचकांक उठ भी जाता है, यानी यह फर्जी संवेदनशील है। ऐसे ही सफल इंसान होते हैं, संवेदनशील दिखते हैं, पर होते फर्जी वाले हैं। सीवर में मौत-विषय पर ऐसे संवेदनशील पेरिस में जाकर लेक्चर देते हैं और इतना कमाकर लाते हैं कि घर में चांदी का कमोड बनवा सकें। संवेदना को कोई ढंग से साध ले, तो बहुत धंधा देती है। भांति-भांति के एनजीओ में संवेदनशीलों के आर्थिक उत्थान को देखकर यह बात सहज समझी जा सकती है।
अंत में फर्जी को ऊपर ही जाना है- संवेदनशील दिखने वाले को सूचकांक को भी और संवेदनशील दिखने वाले इंसान को भी। वैसे गिरी हुई कई चीजें सच में संवेदनशील भी हो सकती हैं, यहां हिंदी कविता का उल्लेख महत्वपूर्ण है। परम संवेदनशील हिंदी कविता की स्थिति बहुत ही गिरी बताई जाती है। चार कवियों की गोष्ठी में तीन ही पहुंचते हैं भौतिक तौर पर मौका-ए-कविता पर, एक कहता है कि फेसबुक लाइव पर सुना दूंगा। आने-जाने में टाइम में क्यों खोटी करना? कविता में टाइम खोटी ही करना है, तो सिर्फ सुनाने में करो।
अक्सर बिजनेस टीवी चैनलों पर विशेषज्ञ लोग इस विषय पर ज्ञान बांटते हुए पाए जाते हैं कि बताओ, शेयर सूचकांक क्यों गिरा? हलवाई और विशेषज्ञ में यही फर्क है कि हलवाई अपनी मिठाई कभी मुफ्त नहीं बांटता, पर एक्सपर्ट अपना ज्ञान मुफ्त बांटने को आतुर रहता है। जिसे पता हो कि शेयर बाजार क्यों गिरेगा, वह पहले अपना निवेश निपटाएगा, ज्ञान बांटने में टाइम खराब नहीं करेगा। पर बिजनेस चैनल देखकर आश्वस्ति होती है कि हाल सब जगह एक सा है। मुख्यधारा के न्यूज चैनलों से लेकर बिजनेस चैनलों तक वितरित होते ज्ञान का लेवल एक सा है। एक्सपर्ट को कहीं भी नहीं पता कि वह कह क्या रहा है?