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अपने ज्ञान से अनजान सभ्यता

आजकल बहुत सारे लोग बता रहे हैं कि प्राचीन भारत में क्या-क्या था? कंप्यूटर से लेकर सैटेलाइट फोन और मोतियाबिंद के ऑपरेशन से लेकर प्लास्टिक सर्जरी तक। ऐसा नहीं है कि यह जानकारी लोगों के पास पहले नहीं...

अपने ज्ञान से अनजान सभ्यता
राजेन्द्र धोड़पकरWed, 23 May 2018 09:27 PM
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आजकल बहुत सारे लोग बता रहे हैं कि प्राचीन भारत में क्या-क्या था? कंप्यूटर से लेकर सैटेलाइट फोन और मोतियाबिंद के ऑपरेशन से लेकर प्लास्टिक सर्जरी तक। ऐसा नहीं है कि यह जानकारी लोगों के पास पहले नहीं थी। कम से कम 19वीं सदी तक के तो ये प्रमाण मिलते हैं कि लोग यह जानते थे कि प्राचीन भारत के लोग क्या-क्या जानते थे? उसके पहले के ऐसे प्रमाण नहीं मिले, तो यह लगता है कि उसके पहले लोग यह नहीं जानते थे कि प्राचीन भारत के लोग यह सब जानते थे। 

इस हिसाब से प्राचीन भारत के लोगों को भी यह नहीं पता था कि उन्हें यह सब पता है। यानी धृतराष्ट्र और संजय को यह नहीं मालूम था कि उनके पास सैटेलाइट फोन और इंटरनेट की क्षमता है। वह जानकारी दरअसल उनके मस्तिष्क में गुप्त रूप से पड़ी थी। यह बात बिप्लब देब और उनके अग्रज राजनेताओं को पता है, लेकिन वे महाभारत युग में जाकर संजय को तो नहीं बता सकते कि आप अपने ज्ञानचक्षु खोलिए, आपके मस्तिष्क में इंटरनेट और सैटेलाइट फोन की जानकारी है। ऐसे में, संजय को अपनी पुरानी किस्म की दिव्य दृष्टि का ही सहारा लेना पड़ा, और महाराज धृतराष्ट्र को संजय की ‘रनिंग कमेंट्री’ पर ही संतोष करना पड़ा। अगर उन्हें यह पता होता कि आंखों की सर्जरी का ज्ञान मौजूद है, तो बात ही कुछ और थी। लेकिन बिप्लब बाबू के अग्रज भी महाभारत काल में जाकर यह बता नहीं सकते।

ज्ञान होना एक बात है, लेकिन यह ज्ञान होना कि वह ज्ञान है, बिल्कुल दूसरी बात है। इसी तरह, अज्ञान होना एक बात है, लेकिन यह अज्ञान है, यह ज्ञान होना दूसरी बात है। समस्या मूलत: यही है कि लोगों के पास अज्ञान है, लेकिन उन्हें लग रहा है कि उनके पास ज्ञान है। लोगों के पास कद्दू है, लेकिन उन्हें यह लग रहा है कि यह फुटबॉल है और वे सेल्फ गोल करने पर उतारू हैं। अब कोई क्या कर सकता है? 

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