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क्रियाओं से क्रिया कर्म तक

व्याकरण की दृष्टि से भले ही रूठना, मनाना, आना, जाना, मनुहार करना, पैर पटकना आदि मात्र क्रियाएं या बार-बार रूठना, जल्दी रूठना, तुरंत मान जाना, देर से लौटना आदि क्रिया विशेषण हों, परंतु राजनीति में और...

क्रियाओं से क्रिया कर्म तक
अतुल चतुर्वेदीTue, 16 Oct 2018 12:28 AM
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व्याकरण की दृष्टि से भले ही रूठना, मनाना, आना, जाना, मनुहार करना, पैर पटकना आदि मात्र क्रियाएं या बार-बार रूठना, जल्दी रूठना, तुरंत मान जाना, देर से लौटना आदि क्रिया विशेषण हों, परंतु राजनीति में और विशेषत: चुनाव के घमासान दिनों में इनका विशेष अर्थ है। इनके भावार्थ भी अत्यंत व्यापक हैं। वहां ये मात्र क्रियाएं नहीं रह जातीं, बल्कि विशेष क्रिया, कर्म हो जाती हैं। इन क्रिया, कर्मों पर ही आपके कार्यक्रम तय होते हैं और उनसे ही आपका भविष्य निर्धारित होता है। जब आप रूठते हैं, तो इससे दो संभावनाएं ही पनपती हैं- या तो आपका सेंसेक्स चुनावी बाजार में बढ़ेगा या फिर आप लौट के बुद्धू वाली कहावत को चरितार्थ करेंगे। 

आना-जाना सृष्टि का क्रम है और राजनीतिक दलों का स्वाभाविक चरित्र। चुनावी दिन चक्रवात की तरह होते हैं। उन दिनों जहाज के पंछी पुन: जहाज पर लौटने के क्रम में सक्रिय होते हैं। ऐसे में, स्वाभाविक है भगदड़ मचेगी ही। कुछ के घुटने टूटेंगे, तो कुछ कामयाब होकर सत्ता का पाला छू लेंगे। कुछ की अंतरात्मा कचोटेगी और कुछ पैर पटककर बाहर चले जाएंगे। यकायक उन्हें इलहाम होगा कि वे अभी तक गलत पार्टी में थे, उनकी मुक्ति का मार्ग यह नहीं। वे जनता की आखिरी बार सेवा करना चाहेंगे। 

वैसे वे जनता की पिछले 20 साल से सेवा की कोशिश कर रहे थे, लेकिन दुर्भाग्य से उदर और परिजन सेवा में ही सारा वक्त जाया हो गया। मगर इस बार वे कृत संकल्प हैं, बस एक और मौका दे दीजिए। कुछ लोग फिसल जाएंगे, तो कुछ बहक जाएंगे। कुछ को मना लिया जाएगा, तो कुछ मनुहार के कच्चे कहते ही मान जाएंगे। 

ऐसी रोचक क्रियाएं, स्टंट सीन, रहस्य-रोमांच के दृश्य इन दिनों भारतीय राजनीति के रंगमंच पर आपका भरपूर मनोरंजन करेंगे। अब यह आप पर है कि आप ताली बजाते हैं या फिर अपना सिर पीटते हैं। वे तो पूरी ईमानदारी से क्रियाशील हैं, यानी कि सक्रिय हैं बस। 

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