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Hindi News ओपिनियन नश्तरगिर, उठ, मजाक उड़वा, फिर दौड़

गिर, उठ, मजाक उड़वा, फिर दौड़

इधर-उधर जिधर देखो सब दौड़ रहे हैं। कोई बस या ट्रेन या हवाई जहाज पकड़ने के लिए दौड़ रहा है। कोई किसी को पीछे छोड़ने के लिए दौड़ रहा है। कोई किसी से पीछा छुड़ाने के लिए दौड़ रहा है। कोई बिना वजह ही दौड़ रहा...

गिर, उठ, मजाक उड़वा, फिर दौड़
अनुज त्यागीMon, 14 May 2018 09:03 PM
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इधर-उधर जिधर देखो सब दौड़ रहे हैं। कोई बस या ट्रेन या हवाई जहाज पकड़ने के लिए दौड़ रहा है। कोई किसी को पीछे छोड़ने के लिए दौड़ रहा है। कोई किसी से पीछा छुड़ाने के लिए दौड़ रहा है। कोई बिना वजह ही दौड़ रहा है, क्योंकि सब दौड़ रहे हैं। मोटरगाड़ी ने बैलगाड़ी को हटा दिया। बाइक आई तो साइकिल चली गई। 5जी ने 2जी को अलविदा कर दिया। इतने उदाहरण काफी हैं हमें डराने के लिए कि तेज दौड़ वरना रौंद दिया जाएगा। बच्चे क्लास में अव्वल नंबर पाने की दौड़ में हैं। अभिभावकों को बच्चों की असफलता पर पूरा विश्वास है इसलिए वो उन बच्चों के भविष्य सुरक्षित करने के लिए दौड़ रहे हैं। 

इतना दौड़ने के बाद भी सब फिसड्डी साबित हो रहे हैं। ऐसा दौड़ा जैसे घोड़ा, फिर भी कहलाया निगोड़ा, तो क्या खाक दौड़ा। वो नेता क्या जिसके चमचे न हों, वो नौकरानी क्या जो बिना बताए छुट्टी न करे, वो सहपाठी दोस्त क्या जो जेब खाली न करे, हर किसी की कुछ न कुछ विशेष पहचान है। पहचान बनाने के लिए कुछ विशिष्ठ गुण जरूरी हैं। 

हर दौड़ने वाले को धावक के रूप में पहचान दें। वो धावक क्या, जो मुंह के बल न गिरे? धावक बनना है तो गिर, उठ, मजाक उड़वा, फिर से दौड़। बिना गिरे, उठे, मजाक उड़वाए, दौड़ा तो कौन ध्यान देगा? नाटक कर। दौड़ने का नहीं, गिरने का। बार-बार गिर, हर दौड़ से पहले गिर। गिरेगा, तो चर्चा में आएगा। न गिर पाए तो गिरने की अफवाह उड़वा। आज अफवाह होगी, तभी कल वाह-वाह होगी। 

बिना गिरे दौड़ता गया, तो थक जाएगा। थककर गिरा, तो फिर कभी नहीं उठ पाएगा। जो गिरकर नहीं उठा, वह इतिहास में गिरा हुआ माना जाता है। हे धावक, गिर, बारम्बार गिर। तब तक गिर जब तक सारी कायनात में तेरे गिरने के चर्चे न हों। अब दौड़, हर बाधा दौड़ में दौड़। गिरने का अनुभव, हर बाधा को आधा कर देगा।

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