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खाली थाली और उनका आभामंडल

ये सब उनके बाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली का खेल है। पिचके पेट को भरा हुआ बता देते हैं और भरे को खाली घोषित कर खुशी से मदद भी कर देते हैं।  मोहल्ले के रामू की थाली खाली पड़ी है, पर महाशय को यह...

खाली थाली और उनका आभामंडल
   इन्द्रजीत कौरTue, 10 Jul 2018 12:25 AM
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ये सब उनके बाएं हाथ की सबसे छोटी उंगली का खेल है। पिचके पेट को भरा हुआ बता देते हैं और भरे को खाली घोषित कर खुशी से मदद भी कर देते हैं। 

मोहल्ले के रामू की थाली खाली पड़ी है, पर महाशय को यह खाली कतई नहीं लगती। वह दुखी भी नहीं होते। स्नेह से थाली पकड़कर वह सिर के पीछे लगा लेते हैं। इससे उनका आभामंडल तैयार हो जाता है। थाली लगाते ही उनमें थल के साथ जल और वायु क्षेत्रों के मालिक होने का बोध घर कर जाता है। इस बोधत्व से उनके मुखमंडल में अंदरूनी चमक बढ़ जाती है और थाली से किरणें टकराकर चहुंओर फैल जाती है।

हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि वह बहुत तेज हैं। खाली थाली लगाते ही उनके तीव्र तेजत्व से थाली में छेद हो जाता है। मैंने हिम्मत करके उनसे शंका का समाधान कर डाला, आपको नहीं लगता कि जिस थाली में आप खा रहे हैं, उसमें छेद नहीं करना चाहिए?

उनका मुख आग के गोले में बदल गया। तेज आवाज में उन्होंने लावा निकाला, ‘देखिए भैनजी, मैं उनका दिया नहीं खाता, वे मेरा दिया खाते हैं। मेरी वजह से उनके पूरे शरीर के अस्थि पंजर का अस्तित्व है। उन्हें हवा, पानी और धूप मेरी वजह से मिलती है। उनके खेत की मिट्टी की नमी भी मेरी ही दी हुई है। 

इतना सुनते ही बगल में खड़े रामू की आंखों में नमी आ गई। मैं पूछने ही वाली थी कि ‘इसकी आंखों की नमी देने का हक आपको किसने दिया?’ पर हड्डी का ढांचा संभाले उस बंदे ने मना कर दिया।

मैंने सोचा कि अब मुई थाली भी क्या करे? जैसे ही आभामंडल बनाने के लिए उसे उठाया जाता है, उसकी चमक बढ़ती जाती है। इसके दो फायदे हो जाते हैं- पहला, महाशय के चेहरे से थाली भर जाती है। दूसरा, उनका हंसता-चमकता चेहरा देखकर रामू को भूख नहीं लगती या लगी हुई भूख मर जाती है। 
 

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