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Hindi News ओपिनियन नश्तरजैसी शकल, वैसी ही अकल का मारा

जैसी शकल, वैसी ही अकल का मारा

मेरे सिर के तीन चौथाई बाल झड़ चुके हैं, और जो हैं, उनमें से तीन चौथाई सफेद हो चुके हैं। अब यह उम्मीद भी नहीं है कि मेरी जो छवि बचपन से बनी थी, वह बदल सकती है। बचपन से ही लोग मुझे शरीफ मानते रहे हैं।...

जैसी शकल, वैसी ही अकल का मारा
राजेन्द्र धोड़पकर Wed, 05 Dec 2018 11:22 PM
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मेरे सिर के तीन चौथाई बाल झड़ चुके हैं, और जो हैं, उनमें से तीन चौथाई सफेद हो चुके हैं। अब यह उम्मीद भी नहीं है कि मेरी जो छवि बचपन से बनी थी, वह बदल सकती है। बचपन से ही लोग मुझे शरीफ मानते रहे हैं। किसी को शरीफ कहना उसे चाशनी में लपेटकर कमअक्ल या बेकार कहने जैसा है। लोग अमूमन मंद बुद्धि और शराफत का गहरा संबंध मानते हैं। अगर कोई बुद्धिमान उन्हें शरीफ लगता है, तो वे इसे बुद्धि का दुरुपयोग मानते हैं। हमारे समाज में यह माना ही नहीं जाता कि बुद्धि का इस्तेमाल अच्छे कामों के लिए भी किया जा सकता है। इसके होने का अर्थ है जुगाड़ का वरदान और बुरे काम का पासपोर्ट।
भगवान ने मुझे शक्ल ही ऐसी दी है कि मैं शरीफ लगूं। इसका मुझे बड़ा नुकसान हुआ। लोग यह मानते रहे कि यह आदमी कोई काम ठीक से नहीं कर पाएगा। लोगों की चालाक लगने वाले लोगों से बड़ी उम्मीदें होती हैं। वे मानते हैं कि जो आदमी चालाक है, वह हर स्थिति से निकल सकता है और उन्हें भी निकाल सकता है। वे यह भी मानते हैं कि इस दौरान वह आदमी उन्हें लूट लेगा, लेकिन उन्हें यह भी लगता है कि अगर कोई आदमी चतुर है, तो उससे लुटना उनका कर्तव्य है। इसीलिए अक्सर ऐसे लोग ही नेता बनते हैं और जितना वे जनता को लूटते हैं, उतनी उनकी प्रतिष्ठा बढ़ती जाती है। 
यह मैं भी मानता हूं कि मैं बहुत अक्लमंद नहीं हूं। फिर भी जब मैं यह साबित करने की कोशिश में जुटा कि मैं उतना शरीफ नहीं हूं, जितना दिखता हूं, तो मैं नाकाम रहा। और न ही मेरी मूर्खता उस क्वालिटी की रही, जिसकी मार्केटिंग करके मैं कामयाब हो सकूं। उस किस्म की मूर्खता का आजकल सबसे अच्छा मार्केट है, जो वाट्सएप ग्रुप्स में लोकप्रिय है। बल्कि वह मूर्खता, जिसका चालाकी से मेल हो सके, वह तो टॉप पर पहुंचाती है। लेकिन अब क्या हो सकता है, न तो मेरी शक्ल बदल सकती है और न अक्ल, सो बस लिख दिया। 

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