कितनी बदल गई संतान
पता नहीं क्यों, सुबह टहलते समय ताजा हवा के झोंकों में बासी बातें बहुत याद आती हैं। बाबूजी तरुणाई में जब कहते कि सुबह उठकर टहलना सेहत के लिए बहुत जरूरी है, तो कान के एक द्वार से नसीहत प्रवेश जरूर...
पता नहीं क्यों, सुबह टहलते समय ताजा हवा के झोंकों में बासी बातें बहुत याद आती हैं। बाबूजी तरुणाई में जब कहते कि सुबह उठकर टहलना सेहत के लिए बहुत जरूरी है, तो कान के एक द्वार से नसीहत प्रवेश जरूर करती, मगर शून्य दिमाग के चलते दूसरे कान से निकल जाती। आज जब डॉक्टर की सलाह पर सुबह टहलना अनिवार्यता है, तब श्रद्धेय को स्मरण कर याद आ रहा है कि हुक्म उदूली पर सुनने को यह भी मिलता कि विल पावर मजबूत किए बगैर कुछ नहीं हो सकता। ताजा हवा में सोच रहा हूं कि मजबूत तन में ही मजबूत मन निवास करता है। जब क्षीण काया में गोश्त ही नहीं था, तो इच्छा शक्ति खाक पनपती? वह कहते कि आम हिन्दुस्तानियों में ही इच्छा शक्ति नहीं पाई जाती। सुबह जल्दी न उठकर मॉर्निंग वाक नहीं करने के चलते पूरा हिन्दुस्तान चपेट में आ जाता।
बहरहाल, पिता हर कालखंड के अपने बेटों से परेशान रहे। कभी हमने नहीं सुनी, आज हमारी नहीं सुनी जाती। हर फील्ड के बाप परेशान। बाप संरक्षक बन ‘सजा’ दिए जाते हैं। युग बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है तक पहुंच चुका है। इलाहाबाद के एक जज साहब कोर्ट-कचहरी के बाद शायरी भी करते थे, उन्होंने लिखा है कि हम उन किताबों को काबिले जब्ती समझते हैं, जिनको पढ़कर बेटे बाप पर फब्ती कसते हैं।
हमारे चाचा से मिलने उनके एक परिचित आए। बाबा चबूतरे पर हुक्का गुड़गुड़ा रहे थे। आगंतुक ने पूछा, विधायक जी का यही निवास है? बाबा ने हामी भरी, साथ यह भी सूचित किया कि इस समय वह घर पर नहीं हैं। आगंतुक की सहज जिज्ञासा थी- क्या आप उनके पिताजी हैं? बाबा का उत्तर था- मुनिस्पैलिटी में तो यही लिखा है, लेकिन आजकल ऊ हमारे बाप हैं। अधिकांश फादर इसी तरंग में जीवन-यापन कर रहे हैं। बंद कमरों में एसी की हवा खाने वाले बेटे दिन में एकाध मर्तबा ‘पापा आप नहीं समझोगे...’ का अलाप लगा ही लेते हैं।