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Hindi News ओपिनियन नश्तरकरने को और क्या है चर्चा के सिवा

करने को और क्या है चर्चा के सिवा

भले इन दिनों नाना प्रकार के टीवी चैनल देश-विदेश की घटनाओं की सुबह से शाम खबरें चला रहे हों, लेकिन अखबार का चस्का जिसे लग जाए, वह समय निकालकर गुसलखाने की ‘सीट’ पर बैठ खबरों का जायजा...

करने को और क्या है चर्चा के सिवा
अशोक संडThu, 02 Aug 2018 11:57 PM
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भले इन दिनों नाना प्रकार के टीवी चैनल देश-विदेश की घटनाओं की सुबह से शाम खबरें चला रहे हों, लेकिन अखबार का चस्का जिसे लग जाए, वह समय निकालकर गुसलखाने की ‘सीट’ पर बैठ खबरों का जायजा ‘नित्यकर्म’ के साथ जोड़ ही लेता है। उस दिन जब साहबजादे ने अलग रंग के कागज वाले अखबार में छपी खबर दिखाई, तो सोचने लगा कि अब पहिरावे की खबर भी प्रमुखता के साथ छपने लगी हैं। खबर थी- संसद के सेंट्रल हॉल में कुछ माननीय सांसद चर्चा करते पाए गए कि महिला सांसदों में सबसे अच्छा परिधान बोध किसका है? पता नहीं कैसे टीवी चूक गया, लेकिन अंग्रेजी अखबार ने लपक ली यह खबर।

खबर के अनुसार, सोनिया जी अव्वल रहीं। दूसरे नंबर पर स्थापित हुईं सुप्रिया सूले, जिनके लिए एक राय यह थी कि विगत चार वर्षों में उन्होंने किसी भी साड़ी को दोबारा नहीं पहना। अभिनेत्री होने के कारण हेमा मालिनी इस प्रतियोगिता में शामिल नहीं थीं। धन्य हो भाइयो, देशवासियों के तन ढकने या न ढकने पर आप कुछ न कहें, आपकी सबसे बड़ी चिंता है- हू इज वेल डे्रस्ड?

परिधान को लेकर राजनेताओं में जो जागरूकता कुछ समय से दिख रही है, वह पहले नदारद थी। नंदिनी सत्पथी से सुचेता कृपलानी और शीला कौल जी की साड़ियां कभी चर्चा में नहीं रहीं। कहां एक सी शेरवानी में फंसा गुलाब वाले पीएम, फिर सामान्य धोती-कुरते वाले प्रधानमंत्री। और अब नित नई सदरी बदलते रहने का फैशन भारतीय राजनीति की मुख्यधारा में शामिल हो चुका है।

पहना होगा कभी मोहनदास करमचंद ने थ्री पीस सूट। अंत समय में तो एक साधारण धोती ही नजर आई बापू के तन पर। कारण चिंता थी देश की गरीबी की। फिक्र थी उनकी, जो साधारण पहिरावे के मोहताज थे। राजनेता अब वस्त्र-विन्यास में रुचि लेने लगे हैं, तभी संसद के गलियारे में चर्चा होती है ‘हू इज वेल ड्रेस्ड?’  

 

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