आधुनिक कालिदास की कलम से
हे प्रियतमा सड़क, मन बहुत उदास है। काले बादलों को देखकर मन की पीड़ा फूट पड़ती है। ऐसा ही कुछ मेरा हाल है। मैं भी वर्षा के आते ही व्याकुल हो उठता हूं। मैं जानता हूं, तुमसे जुदा होने का वक्त आ गया है।...
हे प्रियतमा सड़क, मन बहुत उदास है। काले बादलों को देखकर मन की पीड़ा फूट पड़ती है। ऐसा ही कुछ मेरा हाल है। मैं भी वर्षा के आते ही व्याकुल हो उठता हूं। मैं जानता हूं, तुमसे जुदा होने का वक्त आ गया है। जैसे ही बंगाल की खाड़ी से मानसून के बादल उठते हैं, मैं दुखी हो उठता हूं। घर, शहर वाले, सब दुखी हैं। शहर के कोने-कोने तक तुम्हारी हल्की काली सी पट्टी देखकर कम से कम दिशाज्ञान तो रहता था। भले ही तुम्हारी उबड़-खाबड़ संरचना पर तकलीफों के साथ संभल-संभलकर ही सही, मंजिल तक तो चले जाते थे। ढाका के मलमल से भी महीन परत वाली प्रियतमा सड़क, तुम तो वेंटिलेटर पर पड़े बुजुर्ग की तरह थी, जिसके भौतिक शरीर के रहने से कम से कम सिर पर साया तो महसूस होता था।
पर वर्षा की पहली बूंद से तुम मानो पिघलने लगी। वर्षा का जोर बढ़ा, तो तुम बह गई। तुम पुण्यात्मा हो। दर्शन के अनुसार, मरने के बाद मिट्टी वाला शरीर यहीं रह जाता है, आत्मा अनंत में विलीन हो जाती है। लेकिन तुम सशरीर ही विदा हो गई, ऐसा सौभाग्य चुनींदा पुण्यात्माओं को मिलता है। किस्मत वाले हैं वे प्रेमी, जो अपनी प्रियतमा के अवशेषों से लिपटकर कम से कम याद तो कर लेते हैं। हड़प्पा-मोहनजोदड़ो की खुदाई में पुरातत्व विभाग तीन हजार साल पुरानी सड़क ढूंढ़ पाया। पर वर्तमान में वर्षाकाल में मोक्ष प्राप्त सड़कों का चिह्न तो फोरेंसिक जांच से भी नहीं मिल पाएगा।
एक छोर से देखने पर तुम गड्ढा नजर आती हो, तो दूसरे छोर से देखने पर पोखर। तुम सड़क कहां से हो, यह रहस्य कोई नहीं जान पाया है। हम सब तुम्हारे पुनर्जन्म की आस लगाए हुए हैं। विश्वास है कि चुनावी प्रसव काल में तुम्हारी किलकारियां हमारे शहरी आंगन में गूंजेंगी। तुम फिर ढाका की मलमली काया लिए चहकोगी और अगले वर्षाकाल तक यह मौसम बसंतमय हो जाएगा। मैं बस तुम्हारे पुनर्जन्म की प्रतीक्षा कर रहा हूं।