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Hindi News ओपिनियन नश्तरपोथी पढ़-पढ़ आगे बढ़ चुके लोग

पोथी पढ़-पढ़ आगे बढ़ चुके लोग

भारत के मध्यमवर्गीय लोगों को यह गलतफहमी है कि वे पढ़े-लिखे हैं। यह गलतफहमी एक दूसरी गलतफहमी से जुड़ी हुई है कि हमारे यहां शिक्षण संस्थानों में जो दिया जाता है वह ज्ञान होता है। मध्यमवर्गीय लोग यह मान...

पोथी पढ़-पढ़ आगे बढ़ चुके लोग
राजेन्द्र धोड़पकरWed, 11 Jul 2018 11:58 PM
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भारत के मध्यमवर्गीय लोगों को यह गलतफहमी है कि वे पढ़े-लिखे हैं। यह गलतफहमी एक दूसरी गलतफहमी से जुड़ी हुई है कि हमारे यहां शिक्षण संस्थानों में जो दिया जाता है वह ज्ञान होता है। मध्यमवर्गीय लोग यह मान बैठते हैं कि स्कूल कॉलेजों में वे जो कुछ करते हैं वह पढ़ाई की श्रेणी में आता है, और डिग्री की कोशिश में वे पढ़े-लिखे हो जाते हैं। वैसे ऐसी गलतफहमी ही उनके पढ़े लिखे होने पर सवालिया निशान लगाने के लिए काफी है। 

खास तौर पर यह गलतफहमी उन लोगों को ज्यादा होती है जो किसी प्रतियोगी परीक्षा से गुजर कर डॉक्टर और इंजीनियर बनते हैं। उन्हें लगता है कि वे हजारों या लाखों लोगों को पीछे छोड़ कर डॉक्टर या इंजीनियर बने हैं तो जरूर वे उन लोगों के मुकाबले ज्यादा पढ़े-लिखे हैं। मेरा सवाल यह है कि जब स्कूटर सुधारने वाला मैकेनिक पढ़ा लिखा नहीं माना जाता तो शरीर सुधारने वाला डॉक्टर पढ़ा लिखा क्यों माना जाए? दोनों के पास हुनर है, और इसका हुनर उसके हुनर से उजला क्यों? बाकी दोनों में क्या फर्क है, व्हाट्सएप पर वैसे ही गुडमर्निंग, गुडनाइट और चुटकुले दोनों ही भेजते हैं और माननीय नरेंद्र मोदी को यूनेस्को ने दुनिया का सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री घोषित किया या मुसलमानों से हिंदू धर्म को खतरा है किस्म की फर्जी खबरों का झूठ पकड़ने के मामले में दोनों की योग्यता एक जैसी है। मैकेनिक को पढ़े लिखे होने का भ्रम नहीं है, इसलिए संभव है कि उसका सामान्य ज्ञान ज्यादा हो। इंजीनियर साहब की बनवाई सड़क और मैकेनिक की सुधारी स्कूटर में कौन ज्यादा भरोसेमंद है, यह बताइए।

इसके बाद भी जलवा यह कि ऐसे लोग कहते हैं कि अनपढ़ों की वजह से हमारा लोकतंत्र ठीक से काम नहीं कर रहा है। इस देश में तो डिक्टेटरशिप होनी चाहिए। जो लोग अपना नेता चुनने का हक किसी अनजान डिक्टेटर के लिए छोड़ने को तैयार हों, उन्हें क्या पढ़ा लिखा माना जाए? 

 

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