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Hindi News ओपिनियन नश्तरभले देर से आए, बरसे जमके

भले देर से आए, बरसे जमके

प्रतिवर्ष के अनुसार इस वर्ष भी भीषण गरमी झेलते हुए पूरे हौसले और उमंग से सवा सौ करोड़ देशवासी वर्षा ऋतु का इंतजार कर रहे हैं। जितनी व्यग्रता, बेचैनी और बेताबी से वर्षा ऋतु का इंतजार होता है, उतना अन्य...

भले देर से आए, बरसे जमके
अशोक सण्डThu, 27 Jun 2019 10:26 PM
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प्रतिवर्ष के अनुसार इस वर्ष भी भीषण गरमी झेलते हुए पूरे हौसले और उमंग से सवा सौ करोड़ देशवासी वर्षा ऋतु का इंतजार कर रहे हैं। जितनी व्यग्रता, बेचैनी और बेताबी से वर्षा ऋतु का इंतजार होता है, उतना अन्य किसी ऋतु का नहीं होता, जिसमें घन घमंड के नभ में गरजने की वजह से भगवान तक का मन डोला रे, डोला रे, डोला की भाव-भूमि पर विचरने लगा था। हमारी क्या बिसात कि उंगली उठाएं। गुण-दोष हर मौसम के होते हैं, लेकिन बरसात की सूचना मात्र से तपन, धूप, धूल से मन की सांकल बज उठती है। दुख भरे दिन बीते रे भैया अब सुख आयो रे।  माथे पर पड़ी सिलवटें स्थाई न होने पाएं, अब आ भी जाओ देवी। सिर्फ गरजना नहीं, बरसना भी झेल लेंगे, जब झुलसती गरमी बर्दाश्त कर ली, तब अति वृष्टि भी कुबूल।

नाम भले किसान का उछाला जाए, पर किसे नहीं रहता है बारिश का इंतजार? पारे के लुढ़कने की बेला आ रही है। इसकी अगवानी के वास्ते सारा देश विनयावनत। धरती का चप्पा-चप्पा दर्शनाभिलाषी। सामान्य जन के वास्ते मानसून मुनादी है वर्षारंभ की। आषाढ़ लगे तीन-चार दिन निकल चुके, बारिश का नामो-निशां नहीं। अलबत्ता जब आषाढ़ के पहले दिन बारिश हुई, सहसा याद आई भवानी भाई की पंक्तियां बूंद टपकी एक नभ से... पसीना टपकना तो बंद होगा। मेघदूतम  में इसी आषाढ़ में पहले दिन पहाड़ की चोटी पर झुके मेघ को एक विरही ने देखा था।  

गणपति बप्पा को विदा करते समय प्रार्थना उमड़ती है कि अगले बरस तू जल्दी आ। इसके बरक्स ग्रीष्म ऋतु की विदा बेला में उलट कामना मैया, अगली बार आराम से आना। लब्बो-लुआब ये कि आने वाले दिनों में मेघदूतों की टोली से आसमान के पटते ही कूलर गुम हो जाएंगे और छा जाएगा छाता बाजार। मौसम विभाग तसल्ली दे रहा है, मानसून देर से आएगा। समय से तो सिर्फ पिज्जा की डिलेवरी होती है। भले देर से आए, लेकिन कामना है कि आए तो फिर जमकर बरसे। आओ ‘मानसून’ जी एत्थे त्वाडा सुआगत है।

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