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रुपये के मेरे ज्ञान की कीमत

दूसरे ज्यादातर लोगों की तरह रुपये की कीमत का गणित मुझे समझ में नहीं आता। मेरी मजबूरी यह है कि मैं पत्रकार हूं और बहुत शुरुआत में ही मेरे आदरणीय वरिष्ठों ने मुझे समझा दिया था कि सच्चा पत्रकार वही है,...

रुपये के मेरे ज्ञान की कीमत
राजेन्द्र धोड़पकरWed, 28 Aug 2019 11:27 PM
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दूसरे ज्यादातर लोगों की तरह रुपये की कीमत का गणित मुझे समझ में नहीं आता। मेरी मजबूरी यह है कि मैं पत्रकार हूं और बहुत शुरुआत में ही मेरे आदरणीय वरिष्ठों ने मुझे समझा दिया था कि सच्चा पत्रकार वही है, जो उन तमाम विषयों पर ज्ञान बघार सके, जिनके बारे में वह कुछ नहीं जानता। उन्हीं वरिष्ठों ने यह भी समझाया था कि सच्चे पत्रकार को व्यवस्था के खिलाफ हमेशा डटकर खड़ा होना चाहिए। मैं और मेरे साथ के काफी पत्रकार तब जो डटकर खड़े हुए, तो अब तक खड़े ही हैं, और इस बीच तमाम लोगेरेंगते हुए काफी आगे निकल गए। अब उन वरिष्ठों को क्या कहें, जिन्होंने हमें गलत आदतें डलवा दीं।

बहरहाल, बात रुपये की कीमत की चल रही थी, जिसके बारे में हम जैसे लोग ज्ञानी होने का दावा पत्रकार होने के नाते करते हैं और बाकी इसलिए कि उनकी पत्नी उन्हें अज्ञानी न समझ ले। वैसे मुझे यह समझ में नहीं आता कि रुपये की कीमत से मुझे या किसी को क्या फर्क पड़ता है। मैं या मुझ जैसे लोग कभी कहीं रुपया खरीदने जाते नहीं हैं और जहां तक बेचने की बात है, तो जिंदगी में हमने अखबार की रद्दी के अलावा कभी कुछ बेचा नहीं होगा। हमें तो यह भी पता नहीं है कि वह बाजार कौन सा है, जहां रुपये को बेचा या फिर खरीदा जाता है। हमें तो बस यही पता है कि रुपये देकर दाल, आटा, सब्जी वगैरह खरीदे जाते हैं। इसलिए मन में यह सवाल हमेशा बना रहता है कि  आखिर कोई रुपया खरीदता या बेचता ही क्यों है?

पांच-छह साल पहले जब रुपये की कीमत गिरती थी, तो आम लोगों के साथ बडे़ नामी लोग उसके बारे में सोशल मीडिया पर टिप्पणी करते थे, उसका मजाक उड़ाते थे, उसे लेकर सरकार की आलोचना करते थे। अब रुपये की कीमत इतनी कम हो गई है, जितनी पहले कभी नहीं रही, लेकिन अब कोई कुछ नहीं कह रहा है। इसका मतलब है कि या तो अब रुपये का गिरना बुरी बात नहीं रही या आम माहौल ही इतना गिरा हुआ है कि रुपये का गिरना अब कोई मायने नहीं रखता।

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