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Hindi News ओपिनियन नश्तरजाना था जापान, पहुंच गए चीन

जाना था जापान, पहुंच गए चीन

किसी भी सर्टिफाइड आलसी की तरह मैं भी यात्रा करने से बचता हूं, क्योंकि यात्रा करने में उठना, कपडे़ बदलना, सामान तैयार करना, चलना वगैरह बहुत सारी क्रियाएं शामिल होती हैं। अब इस सूची में एक और बड़ा कारण...

जाना था जापान, पहुंच गए चीन
    राजेंद्र धोड़पकरWed, 27 May 2020 08:51 PM
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किसी भी सर्टिफाइड आलसी की तरह मैं भी यात्रा करने से बचता हूं, क्योंकि यात्रा करने में उठना, कपडे़ बदलना, सामान तैयार करना, चलना वगैरह बहुत सारी क्रियाएं शामिल होती हैं। अब इस सूची में एक और बड़ा कारण शामिल हो गया है। 
खबरें आ रही हैं कि कई श्रमिक स्पेशल ट्रेनें जहां पहुंचना था, उसकी बजाय कहीं और पहुंच गईं। यह स्वाभाविक है कि ट्रेनें बडे़ दिनों बाद चली हैं, तो रेल विभाग के तमाम लोग और ट्रेन ड्राइवर रास्ते भूल गए हों। यह हमारे साथ भी होता है कि कार या स्कूटर चलाते वक्त कभी दाएं की बजाय बाएं मुड़ जाते हैं और बड़ी देर बाद समझ में आता है कि गलत रास्ता पकड़ लिया या कभी पता तो लग जाता कि गलत आ गए हैं, लेकिन यू-टर्न दो मील बाद होता है। ट्रेन के रास्ते में यू-टर्न होता है या नहीं, पता नहीं, मगर गलत रास्ते पर चल पडे़, तो लौटें कैसे?
अब रेल विभाग वाले कह रहे हैं कि किसी गफलत से गलती नहीं हुई, ऐसा उन्होंने जान-बूझकर किया कि बक्सर की ट्रेन को राउरकेला पहुंचा दिया, क्योंकि बक्सर वाले रूट पर भीड़ बहुत थी और राउरकेला वाले पर कम थी। अब सारे प्रवासी मजदूर पूरब से पश्चिम या दक्षिण से उत्तर जा रहे हैं, तो शायद रेलवे वालों को लगा होगा कि यह राउरकेला वालों के साथ अन्याय है कि उनके यहां कोई ट्रेन नहीं जा रही। इसलिए उन्होंने ट्रेन उस तरफ भी मोड़ दी। प्रवासी मजदूरों का क्या, वे तो प्रवासी हैं। यहां गए या वहां गए, क्या फर्क पड़ता है? चुनाव तो काफी दिनों बाद है, तब तक वे अपने ठिकाने पहुंच ही जाएंगे।
रेलवे के इस रवैये का मैं आदर करता हूं, लेकिन मैं रिस्क नहीं ले सकता। मैंने तय किया है कि रेलयात्रा तभी करूंगा, जब ट्रेन ड्राइवर यात्रा से पहले गीता  पर हाथ रखकर शपथ लेगा कि वह ट्रेन को टिकट पर लिखे गंतव्य तक ही ले जाएगा, कहीं और नहीं। जाहिर है, ऐसा होने वाला नहीं, और मुझ आलसी को यात्रा न करने का एक और ठोस बहाना मिल गया।
 

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