इस लकीर के भी फकीर हैं कई
कुछ लोग अपने आप से ऐसे खुश नजर आते हैं, जैसे उन्होंने भगवान से ऑर्डर देकर खुद को बनवाया हो। पैदा होने के पहले उन्होंने शायद भगवान से कहा हो कि मेरी हाइट इतनी रखना, कंधे इतने इंच चौड़े, छाती इतने इंच...
कुछ लोग अपने आप से ऐसे खुश नजर आते हैं, जैसे उन्होंने भगवान से ऑर्डर देकर खुद को बनवाया हो। पैदा होने के पहले उन्होंने शायद भगवान से कहा हो कि मेरी हाइट इतनी रखना, कंधे इतने इंच चौड़े, छाती इतने इंच की, कमर थोड़ी ज्यादा चौड़ी। रंग थोड़ा गोरेपन की ओर, शक्ल ऐसी बनाना कि उस पर दाढ़ी जंचे, रोज शेव करने का झंझट न हो। बचपन में थोड़ी औसत आर्थिक स्थिति, ताकि जवानी में कामयाब होने पर मैं कह सकूं कि मैंने बहुत संघर्ष किया है। इसी तरह नागरिकता का भी है, कोई भगवान से यह कहकर पैदा नहीं होता कि मुझे देश के अमुक इलाके में पैदा करना। अगर ऐसा होता, तो अपने देश की जनसंख्या काफी कम होती, क्योंकि बहुत सारे लोग एनआरआई बनकर ही पैदा होना चाहते। भगवान की क्या कहें, हम तो सर सिरील रेडक्लिफ से भी कुछ नहीं कह पाए, जिन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच में आड़ी-टेढ़ी लकीर खींच दी, जिसको हम अपनी सीमा कहते हैं।
वह भारत के विभाजन का नक्शा बनाने से पहले कभी भारत नहीं आए थे। उन्हें यह काम देने के पीछे एक तर्क यह था कि वह भारत के बारे में कुछ नहीं जानते, इसलिए निष्पक्ष रहेंगे। उन्हें सिर्फ पांच हफ्ते का वक्त दिया गया। उन्हें और उनके आयोग के साथियों में से किसी को ऐसा कोई काम करने की विशेषज्ञता या अनुभव भी नहीं था। इसके पीछे भी तर्क यही था कि अगर जानकार व अनुभवी लोगों को लिया गया, तो वे ज्यादा वक्त लगाएंगे। प्रसिद्ध अंग्रेजी कवि डब्ल्यू एच अडेन ने एक व्यंग्यात्मक कविता विभाजन और रेडक्लिफ के बारे में लिखी है, जिसमें कहा गया है कि भारत में उन्हें पेचिश की बीमारी हो गई थी। इस तरह गड़बड़झाले में खींची गई लकीरों के आधार पर आज हम दोस्ती-दुश्मनी, देशप्रेम और देशद्रोह, नागरिक और अनागरिक तय कर रहे हैं। हां, सर रेडक्लिफ ने जाने से पहले अपने सारे कागजात जला दिए थे, यानी वहीं से यह मामला चल रहा है कि ‘कागज नहीं दिखाएंगे’।