हमेशा की तरह हमने इस साल को भी जाने वाले तेरा खुदा हाफिज कहकर सूर्यास्त को सलाम कहने की अपनी परंपरा की पुष्टि कर ली। हालांकि, पुरानी उम्मीदों के ढेर अब भी पडे़ हैं, मगर आदत है कि नए साल से नई उम्मीदें लगानी पड़ती हैं, वरना उसका तिरस्कार होगा। आशा है, नया साल खुशियों और उमंगों से भरा होगा। सपने सिर्फ गरीबों के खाते में होंगे। उन्हें सपनों की ज्यादा जरूरत होती है। अमीर लोग तो अपने सपनों को सच में बदलते हुए सुख प्राप्ति में व्यस्त रहते हैं। उम्मीदों और सपनों में बड़ा बारीक फर्क है। दोनों पाले-पोसे जाते हैं। परिणाम भले ही कुछ हो। नए साल में पूरा विश्व उपद्रवों से हीन होगा, ऐसी उम्मीद खलनायकों को भी है।
नए साल में लोग नए संकल्प लेते हैं। सुधि जन नए संकल्पों के साथ नए विकल्प भी खोज लेते हैं। जैसे बेटा अगर अच्छे नंबरों से इंटर पास हो गया, तो मुख्य परीक्षाओं में बैठाएंगे, अन्यथा बीए, एमए तो है ही। यह बात अलग है कि नए संकल्प हफ्ते, दो हफ्ते बाद भुला दिए जाते हैं। आइसक्रीम कब तक साबुत रहेगी, उसे तो निरंतर घुलना है ही। अंत में, हाथ में सिर्फ डंडी रह जाती है। इसलिए संकल्प के प्रति ईमानदारी बनाए रखना जरूरी है। सपने अधखुली आंखों के नहीं होते। हर सूर्योदय अपने साथ आशा की नई किरणें लेकर आता है। सूर्य का उदय जीवन के लिए जरूरी है। जीवन को दिन भर सूरज की तरह तपना होता है, तब जाकर शीतलता आती है।
वैसे तो हर सुबह नई ही होती है, वह कुछ भी रिपीट नहीं करती है। चीजें वही होती हैं, बस उनका एहसास तरोताजा होता रहता है। नया साल हमें नए भरोसे देता है। वह सिर्फ वादा नहीं करता, उस वादे को निभाने की हैसियत भी रखता है। नया वर्ष हमेशा आदरणीय होता है। वह हमें ईश्वर का दिया हुआ आशीर्वाद होता है। जीवन की नई करवट होता है नया साल। अपने दामन में नई घटनाएं छिपाए नया साल सबको हैरत में डालता है। इसको प्रणाम करते हुए कहिए, आइए पधारिए।
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