घन घमंड घन गरजत घोरा
मुबारक हो। जुलाई के साथ-साथ जीएसटी भी लागू हो गई है। कुछ इसे कफ्र्यू की तरह, तो कुछ इसे ग्रहण की तरह लागू मान रहे हैं। कुछ इसे नोटबंदी का अगला भाग कह रहे हैं। यानी गतांक से आगे। वैसे जनता के लिए यह...
मुबारक हो। जुलाई के साथ-साथ जीएसटी भी लागू हो गई है। कुछ इसे कफ्र्यू की तरह, तो कुछ इसे ग्रहण की तरह लागू मान रहे हैं। कुछ इसे नोटबंदी का अगला भाग कह रहे हैं। यानी गतांक से आगे। वैसे जनता के लिए यह अभी एक पहेली ही है- बूझो तो जानें। यानी सावन ज्यादा बरसा, तो बाढ़, और कम बरसा तो सूखा। यह कर प्रणाली सूखे में बाढ़ लाएगी और बाढ़ में सब कुछ सूखा रहेगा। अब जनता की किस्मत तो ऐसी ही है, जैसे पहाड़ी औरतें मीलों दूर से मटका भर पानी भरकर लाती हैं, लेकिन घर की दहलीज पर आते ही मटका फूट जाता है।
वैसे जीएसटी का एक अर्थ यह भी है कि घन घमंड घन गरजत घोरा, और थर-थर-थर कांपत चित मोरा। जनता की किस्मत का पतनाला तो वहीं गिरेगा, जहां पिछले साल गिरा था। वैसे भी बरसात में अक्सर आसमान साफ नहीं रहता। इसीलिए कश्मीर के कुछ भटके हुए लड़के चाहे जितनी तबियत से पत्थर उछालें, पर हमारा आसमान न छेद पाएंगे। अनेक छेदों वाले छाते का बारिश बिगाड़ भी क्या लेगी? इधर तो किसान आत्महत्या करने के बाद खुश हैं कि उनका वह कर्जा माफ हो गया, जो उन्हें कभी मिला ही न था। वर्षा से भीग रहे गधों का धैर्य और विनम्रता देखते ही बनती है।
बरसात में तो मूर्ख मेंढक भी रटा-रटाया टर्राने लगते हैं। जैसे सरकारी उपलब्धियां गिनवा रहे हों। यह सच है कि कीचड़ में कमल तो खिल सकता है, पर कागज की किश्ती नहीं चल सकती। गरीबों के जो बच्चे बरसाती पानी में नंगे नहाते हैं, सुना है कि उन्हें फोड़ा-फुंसी नहीं होते। वैसे भी उफनते नाले में डूबने के लिए आधार कार्ड की जरूरत नहीं होती। कुछ असंतुष्टों का कहना है कि अब भोजन भी प्रतिशत से मिलेगा। अन्न नहीं राशन में कैलोरी दी जाएगी। जो सड़क घुटने-घुटने पानी में न डूबी हो, उसके चौड़ीकरण का क्या फायदा? कूड़े-कचरे में इत्र छिड़का जा रहा है।
कल मैंने एक ताऊ से पूछा- ताऊ , इस जीएसटी का मतलब क्या है? वह गाने लगा- चूहिए दौड़ियो रे बिल्ली काटणे कूं आई।