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आलोचनाओं का साथ

उन्हें लगता है कि कोई हमेशा उनकी भावनाएं आहत कर रहा है। हर दिन वह खुद को बेचारा पाते और ऐसा व्यवहार करते, जैसे दुनिया उनके लिए हो ही नहीं। हम-आप भी कहीं न कहीं उन जैसे हैं। अमेरिकी लेखक जैक वेल्स...

 आलोचनाओं का साथ
नीरज कुमार तिवारीThu, 01 Jun 2017 12:47 AM
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उन्हें लगता है कि कोई हमेशा उनकी भावनाएं आहत कर रहा है। हर दिन वह खुद को बेचारा पाते और ऐसा व्यवहार करते, जैसे दुनिया उनके लिए हो ही नहीं। हम-आप भी कहीं न कहीं उन जैसे हैं। अमेरिकी लेखक जैक वेल्स कहते हैं, हम उस मोड़ पर हैं, जहां हमारे लिए सबसे बड़ी चुनौती इमोशनल इंटेलीजेंस के मोर्चे पर है। हम जेब से जितने समृद्ध हुए हों, इस मोर्चे पर गरीब ही हुए हैं। वेल्स कहते हैं कि हमें इस बात के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए कि हमारे खिलाफ भावनात्मक सख्ती हो सकती है। इस सख्ती का सबसे मजबूत स्तंभ है- आलोचना। 


विख्यात कवि पाब्लो नेरुदा अपनी जीवनी में लिखते हैं- आलोचना का सामना मुझे अपनी पहली ही कविता के लिए करना पड़ा। वह भी अपने माता-पिता की। यह कविता उन्होंने अपनी प्यारी सौतेली मां पर लिखी थी। कविता जब उन्होंने अपने माता-पिता को दिखलाई, तो उन्होंने छूटते ही कहा, कहां से नकल मारी? पाब्लो ने इस अनपेक्षित व गैर-जरूरी आलोचना को एक सीख की तरह लिया। उनके दिमाग में यह बात गहरे पैठ गई कि बस काम करते जाएं, आलोचनाएं होंगी और ज्यादातर कूड़ेदान में डालने लायक होंगी। पर क्या वे आलोचनाओं की कद्र ही नहीं करते थे? ऐसा नहीं है। उन्हें कुछ आलोचनाएं उतनी ही प्यारी थीं, जितनी उनकी कविताएं।

जरूरत है कि हम अपनी आलोचनाओं की जांच करें। अगर वे अज्ञानता या ईष्र्या से आई हैं, तो उन पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं। अगर उसमें कोई सुझाव हो, तो उसका स्वागत होना चाहिए। लिंकन अपने खिलाफ लिखी गई बातों की क्लिपिंग रखते थे, जिनमें वे लाइनें अंडरलाइन होती थीं, जिनसे कुछ हासिल हो सकता था। 
                                                 

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