समस्या के भीतर है हल
समस्या खड़ी हो, तो हमारी दो तरह की प्रतिक्रियाएं होती हैं- उससे लड़ना या उससे भागना। इसे मनोविज्ञान में ‘फाइट ऑर फ्लाइट रिस्पॉन्स’ कहते हैं। एक तीसरा भी रिस्पॉन्स है और वही समस्या का समाधान...
समस्या खड़ी हो, तो हमारी दो तरह की प्रतिक्रियाएं होती हैं- उससे लड़ना या उससे भागना। इसे मनोविज्ञान में ‘फाइट ऑर फ्लाइट रिस्पॉन्स’ कहते हैं। एक तीसरा भी रिस्पॉन्स है और वही समस्या का समाधान कर सकता है। यह रिस्पॉन्स है, समस्या की जड़ तक जाना।
चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस ने एक बूढ़े व्यक्ति को एक विकराल जलप्रपात में छलांग लगाते हुए देखा, और फिर सौ मीटर की दूरी पर वह सकुशल बाहर निकल आया और गुनगुनाते हुए चल पड़ा। कन्फ्यूशियस के पूछने पर उसने कहा, मैं पानी की गति के साथ दोस्ती करता हूं। मैं उसमें कूद जाता हूं और फिर उसी गति के साथ पानी मुझे बाहर फेंक देता है। मैं जीवन को अपने हिसाब से नहीं बदलता, अपने आप को जीवन के हिसाब से बदलता हूं।
ओशो कहते हैं कि समस्या को समस्या मत कहो। समस्या एक स्थिति है। वह किन्हीं कारणों से आई है। उन कारणों को समझो। न तो लड़ो, न भागो, वरन जागो। समस्या जीवन का हिस्सा है या कहें कि जीने का ही दूसरा नाम है। समस्याओं से ही तो जीवन आगे बढ़ता है। यह हमारी रचनात्मक शक्ति विकसित करता है। आपकी समस्या अलग-थलग नहीं है। समस्याओं का जो विराट जाल है, उसी का हिस्सा है। इसलिए उसे पूरे जाल से तोड़कर आप सुलझा नहीं सकते। यदि कोई परीक्षा में फेल हुआ है, तो उसके पीछे अनेक कारणों का सिलसिला है। उन्हें समझे बगैर आप उपाय नहीं ढूंढ़ सकते। तीसरी बात, सभी समस्याओं के मूल में एक ही समस्या है, अहंकार। जीवन को जानना है, तो अहंकार को हटाकर सीधे समझें, उत्तर अवश्य मिलेगा। जीवन आपका मित्र है, शत्रु नहीं। अन्यथा आपको पैदा ही न करता।