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खुद हल ढूंढ़ें

हमारे मनीषी खुद को जानने पर काफी बल देते रहे हैं। हमारे भीतर क्या-क्या है, यह जानना जरूरी है। जीवन की लहरों में तरंग तभी पैदा होगी, जब हम स्वयं को जानने का प्रयास करेंगे। खुद को जानने का अर्थ है,...

खुद हल ढूंढ़ें
ललित गर्गWed, 19 Feb 2020 11:07 PM
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हमारे मनीषी खुद को जानने पर काफी बल देते रहे हैं। हमारे भीतर क्या-क्या है, यह जानना जरूरी है। जीवन की लहरों में तरंग तभी पैदा होगी, जब हम स्वयं को जानने का प्रयास करेंगे। खुद को जानने का अर्थ है, अपनी शक्तियों से और सबसे ज्यादा अपनी संभावनाओं से परिचित होना। खुद अपना मूल्यांकन अपने आप करना। माना जाता है कि यह रास्ता सकारात्मक सोच की ओर ले जाता है। यही शायद वह अवस्था भी है, जिसमें हम जीवन को आनंदमय और सुखमय बना सकते हैं। यह भी कहा जाता है कि जीवन उनका ही सार्थक है, जो विपरीत परिस्थितियों में मुस्कराते हैं। 
हमने बहुत से लोगों को अशांत और आंसू बहाते हुए देखा है। 

कारण सिर्फ एक ही है- नकारात्मक सोच, सामंजस्य का अभाव, गृह क्लेश और उससे उपजा मानसिक तनाव। ऐसे लोग अपनी हालत के लिए स्वयं उत्तरदायी हैं। आदमी रोता-कलपता रहता है, दुखी बना रहता है। हमारी कठिनाई यह है कि हम अपनी भावनाओं और विचारों पर ध्यान नहीं देते। उन पर हमारी पकड़ या  नियंत्रण भी नहीं है। हमारी सोच की सबसे बड़ी त्रुटि यह है कि हमने सुविधा को सुख मानने की भूल कर दी। इस बात को समझ लेने की भी जरूरत है कि जो कुछ सकारात्मक और नकारात्मक है, वह हमारे भीतर है। यह हमारे ऊपर निर्भर है कि हम किसे चुनते हैं? विचारक रूपलीन ने कहा है कि किसी भी तरह की मानसिक बाधा की स्थिति खतरनाक होती है। खुद को स्वतंत्र करिए। बाधाओं के पत्थरों को अपनी सफलता के किले की दीवारों में लगाने का काम करिए। जहां सोच में विकृति पनपे, वह जगह छोड़ दीजिए। 

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