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रंगों का राग

रंगों की अपनी भाषा है। अपनी लिपि। अगर दुनिया रंगहीन होती, तो शायद ही इतनी सुंदर होती। इसका सौंदर्य चूक जाता। उन देशों में, जहां हमारी तरह की उत्सवधर्मिता नहीं, वहां भी रंगों का बोलबाला है। वहां भी...

रंगों का राग
प्रवीण कुमारThu, 01 Mar 2018 09:16 PM
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रंगों की अपनी भाषा है। अपनी लिपि। अगर दुनिया रंगहीन होती, तो शायद ही इतनी सुंदर होती। इसका सौंदर्य चूक जाता। उन देशों में, जहां हमारी तरह की उत्सवधर्मिता नहीं, वहां भी रंगों का बोलबाला है। वहां भी रंग बोलते हैं। जीने का संदेश देते हैं। कल्पना शक्ति को विस्तार देते हैं। पाब्लो पिकासो कहते थे कि मैं दुनिया की भाषा को रंगों से बदल डालूंगा। उन्होंने काफी हद तक ऐसा किया भी। बताया कि रंग बोलते ही नहीं, सामने वाले को प्रतिक्रिया देने पर भी बाध्य कर देते हैं। यही कारण है कि उनकी पेंटिंग पर रोक तक लगी। तानाशाहों ने माना कि इसकी भाषा खतरनाक है। उन्होंने कबूतरों को भी रंग-बिरंगा बनाया। उनके शिक्षक रोकते, पर वे हवा को भी रंगीन दिखाते। 

कहते हैं कि सृष्टि महज खेल है रंगों का। हर इंसान किसी न किसी रंग में रंगा है, होली में उसके भीतर के रंग उल्लास बनकर बाहर आते हैं। दुनिया की पहली रंगीन फिल्म लाइफ ऐंड पैशन ऑफ द क्राइस्ट  बनाने वाले फ्रांसिसी सिनेकार फर्डिनांड जेका ने एक सवाल के जवाब में कहा था कि श्वेत-श्याम फिल्मों की सारी कलात्मकता अधूरी है, जब तक कि उसे बाकी रंग न मिल जाएं। आज कलर और पेंट पार्टियां तक हो रही हैं। सब जान गए हैं कि रंगों को उछालने से हमारा दिल भी बल्लियों उछलता है। चेहरे पर थोड़े रंग आ जाए, तो वह खुशनुमा दिखता है। आध्यात्मिक गुरु जग्गी वासुदेव हमें समझाते हैं- रंग वह नहीं है, जो दिखता है, बल्कि वह है, जो वह त्यागता है। आप जो भी रंग बिखेरते हैं, वही आपका रंग हो जाता है। वे रंगों के जरिए समझाते हैं- जो पाना चाहते हो, उसे दूसरों के लिए पहले बिखेरो। 

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