फोटो गैलरी

Hindi News ओपिनियन मनसा वाचा कर्मणाशस्त्रधारण की योग्यता

शस्त्रधारण की योग्यता

गीता  के दसवें अध्याय में विभूति योग है। उसमें अपनी महिमा बताते हुए श्रीकृष्ण ने पृथ्वी के कुछ उदाहरण दिए हैं और कहा कि उनमें जो सर्वश्रेष्ठ है, वह मैं हूं। उस दौरान वह कहते हैं, जो भी...

शस्त्रधारण की योग्यता
अमृत साधनाMon, 26 Mar 2018 12:36 AM
ऐप पर पढ़ें

गीता  के दसवें अध्याय में विभूति योग है। उसमें अपनी महिमा बताते हुए श्रीकृष्ण ने पृथ्वी के कुछ उदाहरण दिए हैं और कहा कि उनमें जो सर्वश्रेष्ठ है, वह मैं हूं। उस दौरान वह कहते हैं, जो भी शस्त्रधारी हैं, उनमें मैं राम हूं। अर्थात राम सर्वश्रेष्ठ शस्त्रधारी हैं और मैं उनके जैसा हूं। मजे की बात यह है कि श्रीकृष्ण यह बात उन अर्जुन से कह रहे हैं, जो स्वयं एक श्रेष्ठ धनुर्धर हैं। कौरव-पांडवों की सेना में एक से बढ़कर एक श्रेष्ठ शस्त्रधारी योद्धा और गुरु मौजूद थे, फिर भी श्रीकृष्ण ने आखिर राम का ही नाम क्यों लिया?
ओशो का कहना है कि शस्त्र उसी के हाथ में सुरक्षित है, जिसके मन में हिंसा नहीं हो। जो करुणावान है, जिसके लिए युद्ध महज एक आपद धर्म है। ऐसे व्यक्ति जब किसी को मारते भी हैं, तो उसमें क्रोध नहीं होता, केवल कर्तव्यवश उन्हें यह काम करना पड़ता है। राम के साथ ही रावण भी था, जो युद्ध में निपुण था, परम योद्धा था। लेकिन उसके हाथों में शस्त्र विनाशकारी ही सिद्ध होगा, उसके भीतर वह जागरूकता, संयम और संतुलन नहीं है, जो राम के भीतर है। इस संसार की यही विडंबना है कि जो शांतिवादी होते हैं, वे सक्रिय नहीं होते, वे कहीं एकांत में बैठे संसार का तमाशा देखते रहते हैं। 
जापान के समुराई योद्धा भी इसी करुणा के भाव से लड़ते हैं। वहां उनकी मूर्ति जब बनाते हैं, तो उनके एक हाथ में तलवार होती है और दूसरे हाथ में दीया। वह दीया दरअसल उनकी आंतरिक रोशनी का ही प्रतीक है। इसीलिए उनके हाथों कभी कोई गलत व्यक्ति नहीं मारा जाता। आज के हिंसक माहौल में ऐसे शस्त्रधारियों की बहुत जरूरत है।
 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें