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दिल पर मत लो 

मीटिंग से जब से लौटे हैं, तभी से बेहद चुप हैं। उनकी टीम के काम की खिंचाई हुई। वह उसे दिल पर ले बैठे। ‘अगर हमें गलत ठहराया जा रहा हो, तब भी हर चीज को अपने दिल पर नहीं लेना चाहिए।’ यह मानना...

दिल पर मत लो 
राजीव कटाराSat, 10 Mar 2018 12:45 AM
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मीटिंग से जब से लौटे हैं, तभी से बेहद चुप हैं। उनकी टीम के काम की खिंचाई हुई। वह उसे दिल पर ले बैठे। ‘अगर हमें गलत ठहराया जा रहा हो, तब भी हर चीज को अपने दिल पर नहीं लेना चाहिए।’ यह मानना है डॉ. इलीन कोहीन का। वह मशहूर साइकोथिरेपिस्ट हैं। बैरी यूनिवर्सिटी में काउंसलिंग विभाग से जुड़ी हैं। उनकी चर्चित किताब है, व्हेन इट इज नेवर अबाउट यू: द पीपुल-प्लीजर्स गाइड टु रिक्लेमिंग योर हेल्थ, हैप्पीनेस ऐंड पर्सनल फ्रीडम।

यह सही है कि किसी भी काम को सब पसंद नहीं कर सकते। पसंद-नापसंद अलग बात है। हमारे काम पर जब टोका-टाकी होती है, तो उसे सही अंदाज में लेना चाहिए। यह देखना चाहिए कि उसमें क्या कमी रह गई? वह कमी हमारी प्लानिंग में हो सकती है। रवैये की वजह से हो सकती है। हमारा उसे करने का अंदाज ठीक नहीं हो सकता। यानी कोई कुछ कहता है, तो हमें पहले अपने काम पर ही सोचना चाहिए। उस पर कायदे से विचार करना चाहिए। यह नहीं कि किसी ने कुछ कहा और हमने खट से अपने ऊपर ले लिया। मानो किसी ने आप पर ही उंगली उठाई हो। हम पर उंगली उठाना और काम पर कुछ कहने में बहुत फर्क होता है। और यह हमें समझना चाहिए। काम से जुड़ी चीजों को उसके सिलसिले में ही देखना होता है। तभी हम सही ढंग से काम कर पाते हैं। काम पर तमाम बिंदुओं पर सोच विचार के बाद भी लगता है कि दिक्कत हमसे ही है, तब उसे अपने पर लेना चाहिए। और उस पर भी काम के सिलसिले में ही बात करनी चाहिए। गलतफहमियों को अपने स्तर पर दूर करने की कोशिश होनी ही चाहिए।

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