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कृत्रिम बुद्धि से आगे

आजकल यह चर्चा आम है कि कंप्यूटर की जो कृत्रिम बुद्धि यानी आर्टिफिशिएल इंटेलिजेन्स है, वह शीघ्र ही मनुष्य की जैविक बुद्धि के लिए खतरा बनने वाली है। आधुनिक इंजीनियर्स ऐसा कंप्यूटर बनाने में जुटे हुए...

कृत्रिम बुद्धि से आगे
अमृत साधनाSun, 30 Jul 2017 11:51 PM
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आजकल यह चर्चा आम है कि कंप्यूटर की जो कृत्रिम बुद्धि यानी आर्टिफिशिएल इंटेलिजेन्स है, वह शीघ्र ही मनुष्य की जैविक बुद्धि के लिए खतरा बनने वाली है। आधुनिक इंजीनियर्स ऐसा कंप्यूटर बनाने में जुटे हुए हैं, जो मनुष्य की तरह सोचे। आजकल कुछ लोग भले ही इसके फायदों के बारे में सोच रहे हों, लेकिन ज्यादातर इसके खतरों के बारे में सोच रहे हैं। दिलचस्प बात है कि इस खतरे के बारे में ओशो बहुत पहले ही हमें आगाह कर चुके हैं। उन्होंने कहा था कि आज मनुष्य की जो औसत बुद्धि है, वह स्मृति के सहारे टिकी है, उस तल तक कंप्यूटर आसानी से जा सकता है। बल्कि कृत्रिम बुद्धि और स्मृति मानव स्मृति से अधिक भरोसेमंद होगी। लेकिन कंप्यूटर के विद्वान यह नहीं जानते कि मनुष्य एक बहुत बड़ा ऑर्गेनिज्म है, एक इकाई है, जिसमें केवल तर्क बुद्धि और स्मृति शामिल नहीं है। उसके भीतर भाव का विशाल जगत है, सौंदर्य बोध है, रचनात्मक ऊर्जा है, जिसका डेटा बनाकर मस्तिष्क में फीड नहीं किया जा सकता। कंप्यूटर की सबसे बड़ी कमी है, उसमें चेतना का अभाव। वह स्मृति पर जीता है और स्मृति होती है अतीत का रिकॉर्ड। जो आनेवाला है, उसके बारे में मस्तिष्क नहीं जान सकता। कृत्रिम बुद्धि को मात देनी हो, तो मनुष्य का आध्यात्मिक विकास अनिवार्य रूप से करना होगा। मनुष्य के भीतर कई केंद्र हैं, जो अभी तक अविकसित हैं, उनका विकास करने से हम यंत्र की पकड़ से बाहर हो सकते हैं। इसका साधन है ध्यान। ध्यान एक आंतरिक विज्ञान है, उसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं। कंप्यूटर हमें इस आत्मिक विकास से परे धकेल रहा है। भौतिक विज्ञान को आत्मिक विज्ञान ही जीत सकता है।

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