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बात की बात

दो चीजें सामान्य हो गई हैं- विवाद और थकान। हम थके हुए भी हैं और विवाद करने वाले भी। इन दोनों में कोई बुराई नहीं, पर अक्सर हम गलत जगह विवाद करते हैं और गलत जगह ही थकते हैं। काम से घर लौटते ही हम थके...

बात की बात
प्रवीण कुमारThu, 14 Dec 2017 10:19 PM
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दो चीजें सामान्य हो गई हैं- विवाद और थकान। हम थके हुए भी हैं और विवाद करने वाले भी। इन दोनों में कोई बुराई नहीं, पर अक्सर हम गलत जगह विवाद करते हैं और गलत जगह ही थकते हैं। काम से घर लौटते ही हम थके हुए होते हैं, जबकि यह परिवार के साथ अच्छा समय बिताने का एक शानदार मौका होता है। इसी तरह, हमें जहां विवाद करना चाहिए, वहां नहीं करते और वहां कर बैठते हैं, जहां प्रेम से रहना चाहिए। नोबेल पुरस्कार विजेता रूस के महान मनोवैज्ञानिक इवान पावलोव के मुताबिक, थकान और विवाद जिन-जिन बातों से जुड़े हैं, उनमें एक है बोलना। आप बोलते समय सावधान नहीं हैं और बिना सोचे-विचारे लगातार बोलते जाते हैं, तो विवादों में भी पड़ेंगे और थकेंगे भी।

फुटबॉल के महान खिलाड़ी पेले ने एक बार कहा था,  ज्यादा बोलना या बोलने के मौके तलाशते रहना, अपने आप को थप्पड़ मारने की कोशिश में जुटे रहने जैसा है। उन्होंने कहा कि जब-जब मैं चुप रहा, खुद को कहीं ज्यादा सुखी पाया, हालांकि ऐसा कर पाना आसान नहीं था। ऐसे लोग भी हैं, जो जानते हैं कि अनावश्यक शब्द हमारी ऊर्जा खाते हैं और चेतना को भी मंद करते हैं। वे लोग हमारे प्राचीन ऋषियों या फिर दार्शनिकों की तरह बस एक काम करते हैं- मौन रहने का अभ्यास। जब तक मौन न साधा जाए, हम शब्दों का केवल वहन करते हैं। इससे हमारी ऊर्जा भी जाती है और हम प्रेमपूर्ण होने का अवसर भी गंवाते हैं। मौन का मतलब यथास्थितिवाद नहीं है, बल्कि संतुलित और सधे तौर पर प्रतिक्रियात्मक होना है। किसी व्यक्तित्व से यह समझना हो, तो जो एक नाम सबसे पहले आता है, वे हैं- महात्मा गांधी।

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