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मूड का बन जाना

दिमाग में सुबह से ही यादें और आशा-निराशा का सफर शुरू हो जाता है। जागते ही जीवन के प्रति असंतोष और बीती रात की बेचैनियां फिर से घेर लेती हैं। एक अच्छे दिन की अच्छी शुरुआत की बजाय मूड ऑफ हो जाता है।...

मूड का बन जाना
शशिप्रभा तिवारीTue, 08 Jan 2019 12:00 AM
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दिमाग में सुबह से ही यादें और आशा-निराशा का सफर शुरू हो जाता है। जागते ही जीवन के प्रति असंतोष और बीती रात की बेचैनियां फिर से घेर लेती हैं। एक अच्छे दिन की अच्छी शुरुआत की बजाय मूड ऑफ हो जाता है। स्टीफन कोवे की किताब द लीडर इन मी बेस्ट सेलर रही है। इसमें वह बनते-बिगड़ते मूड की चर्चा करते हैं। इसे वह नाइंटी अपॉन टेन सिद्धांत का नाम देते हैं। 
स्टीफन कोवे कहते हैं कि किसी ने आपसे कोई बात कही या कोई घटना घटित होती हैं, तो इस सबका असर आप पर दस फीसदी होता है। लेकिन आप उस बात को सुनकर या घटना जैसी प्रतिक्रिया करते हैं, तो उसका प्रभाव नब्बे फीसदी पड़ता है। उससे आपका मूड, आपकी दिनचर्या, आपका घर, परिवार, परिवेश प्रभावित होते हैं। जीवन में कुछ-न-कुछ छोटी-बड़ी घटनाएं हमेशा घटित होती रहती हैं। आमतौर पर आप हर समस्या के समाधान के लिए एक्सपर्ट प्वॉइंट से सोचते हैैं, जबकि कुछ समस्याओं का वैकल्पिक समाधान आम नजरिए से ढूंढ़ा जा सकता है। कुछ समस्याओं के लिए साधारण सोच से हम जिंदगी को आसान बना सकते हैं। यह आप पर ही है कि आप चाहें, तो हर बात पर बिखर जाएं या खुद को बेहतर बनाए रखें। मूड भाग्य पर नहीं, आप पर निर्भर करता है। आप जैसा चाहते हैं, आप वैसा ही मूड बना लेते हैं। यह कहीं न कहीं पूरी तरह आप पर निर्भर है। आप अपने हालात से नहीं, फैसले से बनते हैं। तभी तो सद्गुरू जग्गी वासुदेव कहते हैं कि हमारे लिए हर सुबह एक नया संदेश लेकर आती है। हमें आभार व्यक्त करना चाहिए। इससे एक अच्छे दिन की शुरुआत होती है और आपका मूड भी बन जाता है। 
    

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