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गर मौत भी आ गई

पूरी दुनिया में इसका जवाब खोजा जा रहा है कि भूटान के लोग विपन्न होकर भी इतने प्रसन्न क्यों हैं? इसका कारण शायद यह है कि भूटान के लोगों में मौत का डर न्यूनतम होता है। वहां मौत पर चर्चा सामान्य है। मौत...

गर मौत भी आ गई
 नीरज कुमार तिवारी Wed, 05 Dec 2018 11:25 PM
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पूरी दुनिया में इसका जवाब खोजा जा रहा है कि भूटान के लोग विपन्न होकर भी इतने प्रसन्न क्यों हैं? इसका कारण शायद यह है कि भूटान के लोगों में मौत का डर न्यूनतम होता है। वहां मौत पर चर्चा सामान्य है। मौत वहां डरावनी नहीं मानी जाती और सच मानिए, तो यह है भी नहीं। डरावना होता है जिंदगी का न होना। जिंदगी इतनी प्यारी सी चीज है कि इसे खोना हमें डराता है। 

एक प्रवचन में एक गुरु कह रहे थे कि हम जीवन को सही तरीके से जी नहीं रहे होते हैं, इसलिए जैसे ही मौत का जिक्र होता है, हमें जिंदगी की अपर्याप्तता का बोध होने लगता है। इससे बचने की कोशिश में भय पैदा होता है, जो एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। भयभीत होना बहुत आसान है। हम किसी भी चीज से डर सकते हैं। अपनी छाया से भी, जो शायद सबसे हानिरहित चीज है। 

दरअसल, मौत से नहीं डरना है, तो जीवन की कीमत जाननी होगी। जापान के अकिरा कुरोसावा दुनिया के महानतम फिल्मकारों में एक हैं। वह बताते हैं कि बचपन में आए एक जोरदार भूकंप ने टोक्यो को तबाह कर दिया। सड़कों पर लाशें ही लाशें थीं। तब मेरे बड़े भाई मेरा हाथ थामे मुझे सड़क पर ले गए और कहा, देखो यह है जीवन और मृत्यु का रहस्य। जीवन का अंत ही अंतिम सत्य है, लेकिन यह कतई सत्य नहीं कि हम जीवन के खत्म होने से पहले ही जीना छोड़ दें। अकिरा बताते हैं कि उस दिन से मेरे जीवन की धारा बदल गई। मैं मौत से प्यार करने लगा, लेकिन जिंदगी मुझे बे-इंतिहा प्यारी हो गई। आगे इसी दर्शन पर उन्होंने विश्व प्रसिद्ध फिल्म बनाई- इकीरू।  अगर चंद पलों की फुरसत मिले, तो इस फिल्म को हमें जरूर देखना चाहिए। 

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