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अच्छे हैं, तो पिछड़ेंगे क्यों

  कुछ नाकामयाबियां मिलीं, तो उनका अपने पर से भरोसा ही उठ गया। क्या वह इसलिए पिछड़ रहे हैं, क्योंकि बुरे नहीं बन पाए? डॉ रोमियो विटेली इसे नहीं मानते। ‘यह गलतफहमी है। अच्छाई तो पिछड़ने की...

अच्छे हैं, तो पिछड़ेंगे क्यों
 राजीव कटाराSat, 03 Nov 2018 01:10 AM
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कुछ नाकामयाबियां मिलीं, तो उनका अपने पर से भरोसा ही उठ गया। क्या वह इसलिए पिछड़ रहे हैं, क्योंकि बुरे नहीं बन पाए? डॉ रोमियो विटेली इसे नहीं मानते। ‘यह गलतफहमी है। अच्छाई तो पिछड़ने की अकेली वजह नहीं हो सकती।’ वह मशहूर साइकोलॉजिस्ट हैं।  
‘अच्छे लोग फिसड्डी रह जाते हैं।’ बेसबॉल खिलाड़ी और मैनेजर लिओ ड्यूरोशर ने शायद कभी यह कह दिया था। धीरे-धीरे यह बात कहावत ही बन गई। उसका ऐसा असर होगा, यह तो लिओ ने भी नहीं सोचा होगा। उसने अच्छे लोगों के दिमाग में उथल-पुथल मचा दी। और बुरे बनने का लाइसेंस जारी कर दिया। फिर ‘किलर इन्स्टिंक्ट’ की बात होने लगी। यानी अच्छे लोगों में मारक क्षमता नहीं होती। खेलों में तो उसकी खूब चर्चा होती है। लेकिन इधर खेलों में ऐसे लोग टॉप पर आए, जो अच्छाई की मिसाल थे। मसलन, रोजर फेडरर, राफेल नडाल, विश्वनाथन आनंद, सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, अभिनव बिंद्रा, पंकज आडवाणी वगैरह-वगैरह। ये सब महान खिलाड़ी हैं। उनमें किलर इन्स्टिंक्ट कम है, ये शायद ही कोई कह पाए। कामयाबी का अच्छाई-बुराई से कोई लेना-देना नहीं होता। उसके लिए टैलेंट और मेहनत की जुगलबंदी चाहिए। सही समय पर सही कदम भी जरूरी होते हैं। कभी-कभी यहीं हम मात खा जाते हैं। फिर हमें अपने पर भी काफी सोच-विचार करना होता है। हमें सबसे पहले यह देखने की जरूरत होती है कि हमारी ओर से तो कोई कोर-कसर तो नहीं रह गई। हमारी प्लानिंग में, उसे लागू करने में, मेहनत में और पूरी तरह जुट जाने में। तब ही हमें अपने अच्छे होने को कोसना चाहिए।

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