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योद्धा का क्रोध

    किन्हीं दो लोगों के भीतर एक-दूसरे के खिलाफ भभकते क्रोध के कारण लड़ाई के परिणाम बड़े लंबे समय तक होते हैं। बाहर से भले ही वे रुक जाएं, पर भीतर धधकने वाला अंगार, बदले का भाव वर्षों तक...

योद्धा का क्रोध
अमृत साधनाMon, 27 May 2019 06:26 AM
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किन्हीं दो लोगों के भीतर एक-दूसरे के खिलाफ भभकते क्रोध के कारण लड़ाई के परिणाम बड़े लंबे समय तक होते हैं। बाहर से भले ही वे रुक जाएं, पर भीतर धधकने वाला अंगार, बदले का भाव वर्षों तक रहता है, क्योंकि बाहर जो क्रोध दिखता है, उससे कई गुना ज्यादा भीतर दबा होता है। आपका क्रोध आपके व्यक्तित्व की गहराई का पता देता है। किसी ने कुछ कह दिया, आप क्रोधित हो गए, उसका मतलब है कि व्यक्तित्व की गहराई चमड़ी से ज्यादा गहरी नहीं है। यह जो ऊपर सभ्यता का आवरण ओढ़ रखा है, यह बहुत गहरा नहीं है। जरा सा कोई आदमी हंस दे, गाली दे दे और यह आवरण टूट जाता है। 
क्रोध आपकी परिपक्वता की कसौटी है।  चीनी दार्शनिक लाओत्से कहते हैं, ‘जो योद्धा अच्छा लड़ाका है वह क्रोध नहीं करता।’ विश्व भर के मार्शल आर्टस का सबसे बुनियादी नियम है कि जब तक आप क्रोध में हैं तब तक लड़ नहीं सकते। लड़ते हुए क्रोध आ जाए तो लड़ना छोड़ दें। क्योंकि मार्शल आर्ट पैदा हुई है ध्यान से। चीन में, ध्यानियों की आत्मरक्षा के लिए इनका आविष्कार हुआ था। इसके अभ्यासी भावनाओं को बीच में नहीं लाते, वे निर्विकार होकर ऊर्जा से खेलते हैं। एक भारतीय हांगकांग में एक चीनी मार्गदर्शक के साथ वह घूम रहा था। एक जगह दो लोगों के बीच लड़ाई चल रही थी, भीड़ लगी हुई थी। सभी उत्सुक थे कि कौन जीतता है। ये लोग कुछ देर खड़े रहे, फिर अचानक चीनी मार्गदर्शक ने कहा, चलो, लड़ाई  खत्म हो गई। भारतीय ने कहा, अभी तो दोनों ही लड़ रहे हैं? चीनी ने कहा- आपने देखा नहीं, एक आदमी क्रोध में आ गया। बस, वह हार गया। अब क्या बचा है?
 

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