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मान तो लो

उस मसले पर कभी लगा ही नहीं कि उनकी गलती है। लोग कहते रहे कि वह बेवजह की जिद कर रहे हैं। अब महसूस करते हैं कि वह कहीं ठहर गए। ‘पहले हमें अपनी गलती माननी होती है। उसके बिना हम दूर तक नहीं जा...

मान तो लो
राजीव कटाराSat, 17 Nov 2018 01:12 AM
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उस मसले पर कभी लगा ही नहीं कि उनकी गलती है। लोग कहते रहे कि वह बेवजह की जिद कर रहे हैं। अब महसूस करते हैं कि वह कहीं ठहर गए। ‘पहले हमें अपनी गलती माननी होती है। उसके बिना हम दूर तक नहीं जा सकते।’ यह कहना है डॉ जेरेमी शर्मन का। वह मशहूर बायोफिलॉसफर हैं। हाल ही में उनकी किताब आई है, नीदर गोस्ट, नॉर मशीन : द ऐमर्जेन्स ऐंड नेचर ऑफ सेल्व्स।
जरूरी नहीं कि कोई हमें बताए। हमें खुद को ही ठीक करना होता है। अगर हमसे कोई गड़बड़ होती है, तो पता चल ही जाता है। यह अलग बात है कि उसे मानें या न मानें। अगर हमें आगे बढ़ना है, तब गलती जल्द से जल्द मान लेनी पड़ती है। गलती न मानने की भी एक जिद होती है। लेकिन यह जिद हमारा ही नुकसान करती है। हम जब गलती नहीं मानते, तो कहीं अटक जाते हैं। उसे माने बगैर हम अपने को ठीक कैसे कर सकते हैं? और खुद को ठीक किए बगैर हम आगे नहीं बढ़ सकते। 
हम काम करते हैं। हमसे गलतियां होती हैं। तमाम तरह की गलतियां। हमें उन्हें मान लेना चाहिए। तभी हम अपनी गलतियों को सुधार पाएंगे। मानेंगे ही नहीं, तो सुधारने का सवाल ही कहां उठेगा? पहले हम अपनी गलती मानें। यह देखें कि हमसे कहां गलती हुई? उससे सबक लें। उसमें सुधार करें। अगर हमें कुछ जोड़ना-घटाना है, तो वह भी करें। अगर खुद को तैयार करना है, तो वह भी करें। कभी-कभी हम खुद को ठीक नहीं कर पाते। ऐसे में, हमें किसी जानकार की मदद ले लेनी चाहिए। कुल मिलाकर हमें खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए।

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