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प्रेम का पारा

प्रेम में असफल रहे प्रेमियों की एक सामान्य शिकायत है कि उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ। जबकि प्रेम कभी पाने का नाम ही नहीं रहा, वह तो हमेशा देय की वस्तु है। उसे देना ही पाना है। चिंतक खलील जिब्रान ने एक...

प्रेम का पारा
नीरज कुमार तिवारीWed, 13 Feb 2019 11:50 PM
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प्रेम में असफल रहे प्रेमियों की एक सामान्य शिकायत है कि उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ। जबकि प्रेम कभी पाने का नाम ही नहीं रहा, वह तो हमेशा देय की वस्तु है। उसे देना ही पाना है। चिंतक खलील जिब्रान ने एक गांठ बांधने वाली बात कही है- ‘यदि आप किसी से प्रेम करते हैं, तो उसे जाने दें, क्योंकि यदि वह लौटता है, तो आपका है और यदि नहीं आता, तो आपका नहीं था।’ खलील के अनुसार, आपने उसे जाने दिया, यही आपका देय है और यही आपका ग्राह्य भी। ओशो ने भी इसी से मिलते-जुलते शब्द कहे- प्रेम एक दान है, भिक्षा नहीं। प्रेम मांग नहीं, भेंट है। प्रेम भिखारी नहीं, सम्राट है। उसे जो बांटता है, उसे ही प्रेम मिलता है।
 

हमें यह गफलत हो जाती है कि हम प्रेम में हैं, जबकि हम महज आकर्षण या मोहपाश में बंधे होते हैं। सच्चे प्रेमी कम प्रेम के सौंदर्य को ज्यादा पहचानते हैं। प्रेम की चमक उसके भीतर ही बसती है। प्रेम का आधार आंतरिक विश्वास है। उसकी सबसे उत्कट मूल्य स्वतंत्रता है। महात्मा गांधी को स्वतंत्रता और प्रेम के संबंध की गहरी समझ थी। उन्होंने कहा- ‘प्रेम कभी दावा नहीं करता, वह हमेशा देता है, हमेशा कष्ट सहता है। न कभी झुंझलाता है, न बदला लेता है।’ 
हम चूकते वहीं हैं, जहां प्रेम को ऐसी चीज की तरह लेते हैं, जो पॉकेट में रखा जा सके। जबकि विचारक डेरोथी पार्कर कहते हैं, ‘प्रेम हथेली पर रखे पारे की तरह है, मुट्ठी खुली होने पर वह रहता है और भींचने पर निकल जाता है। दुनिया उन्हीं की है, जिन्होंने इसे खुली हथेली पर रखा। और जो मानते हैं कि प्रेम में कुछ नहीं मिला, वे मुट्ठी भींचने वालों में हैं।

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