फोटो गैलरी

भ्रम में जीना

सड़क पर चलते हुए आप अचानक किसी व्यक्ति को देख प्रसन्न होकर उसकी कुशलता पूछने लग जाते हैं। क्षण भर में आपको मालूम हो जाता है कि यह आपका परिचित नहीं, कोई और है। आप धीरे से क्षमा मांगकर झेंपते हुए आगे बढ़...

भ्रम में जीना
महेंद्र मधुकरTue, 12 Mar 2019 01:03 AM
ऐप पर पढ़ें

सड़क पर चलते हुए आप अचानक किसी व्यक्ति को देख प्रसन्न होकर उसकी कुशलता पूछने लग जाते हैं। क्षण भर में आपको मालूम हो जाता है कि यह आपका परिचित नहीं, कोई और है। आप धीरे से क्षमा मांगकर झेंपते हुए आगे बढ़ जाते हैं। ऐसी गलतफहमी की वजह क्या है? वह है सादृश्य और समानता के कारण पैदा हुआ हमारा निश्चयात्मक ज्ञान, जिसे ‘भ्रम’ या ‘भ्रांतिमान’ कहा गया है। ऐसा भ्रम किसी के साथ हो सकता है।
शास्त्र-पुराण पुकार-पुकारकर कह रहे हैं कि दुनिया एक भ्रम, एक छलावा है। वह रामकथा का स्वर्णमृग है, जो हमें सुनहरे सपने दिखाकर भगाता और भटका देता है। कोई बड़ी बात नहीं कि भ्रम का कोई संबंध ‘ब्रह्म’ से भी हो, पर पक्के यकीन से कहना कठिन है। शंकराचार्य ने तो ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या  कहकर दुनिया के मुखौटे पर पड़ा आवरण उतार दिया था। गहरे उतरकर देखें, तो दुनिया झूठ की एक खूबसूरत चारदीवारी में कैद है। कुछ पाने, कुछ खोने, कुछ होने का भ्रम हमारी जीवनेच्छा की अग्नि में हमेशा घृत डालता रहता है। तभी तो हम सब पाकर भी असंतुष्ट और बेचैन नजर आते हैं। सौंदर्य, बल, बुद्धि, ज्ञान और धन का अहंकार भी कभी-कभी भ्रम की सृष्टि करता है। आजकल ऐसे लोगों की लिस्ट बन रही है और घोषित किया जा रहा है कि कौन कितने अंक के पायदान पर है। रीति कविता का एक प्रसंग है कि किसी नायिका के चरण स्वाभाविक रूप से लाल हैं। उसे नया महावर लगाने के लिए नाईन आती है, पर पांवों को भ्रमवश रगड़ती चली जाती हैं कि शायद उनमें महावर पहले से लगा है- पायं महावर देन को नाईन बैठी आए/ फिरि जानि महावरि एंड़ि मिड़ति जाए।
    

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें