उदासी के साथ
कभी न कभी उदासी हर किसी के जीवन में आती है। कई बार मोहक भी लगती है पर ज्यादातर इसके नुकसान देखे जाते हैं। थोड़ी हो और एकाध बार हो तो ठीक है वरना यह हमें तोड़ कर रख देती है। कई बार अवसाद तक ले जाती है।...
कभी न कभी उदासी हर किसी के जीवन में आती है। कई बार मोहक भी लगती है पर ज्यादातर इसके नुकसान देखे जाते हैं। थोड़ी हो और एकाध बार हो तो ठीक है वरना यह हमें तोड़ कर रख देती है। कई बार अवसाद तक ले जाती है। मनोविज्ञानी लिंडजे और थॉम्पसन कहते हैं कि उदासी से बचकर रहें। यह एक दुखद भावना है जो व्यक्ति को अंदर तक हिला देती है। वे कहते हैं जिस कारण व्यक्ति में उदासी की भावना जाग्रत हुई है, वह अगर गहन हो जाए तो व्यक्ति को सामान्य वातावरण से अपने आपको अलग रखने की प्रवृति इतनी तेज हो जाती है कि वह अपनी जिंदगी के जरूरी कामों को भी नहीं करना चाहता। फ्रायड ने इसे शोक की अवधि कहा है। भावनात्मक रूप से जो व्यक्ति ज्यादा संवेदनशील होते हैं, उनके जीवन में यह अवधि जरूर आती है। उदासी के नकारात्मक प्रभाव अधिक हैं, फिर भी प्रगाढ़ प्रेम के लिए यह एक छौंक की तरह है। जिसने उदासी महसूस न की हो, वे प्रेम के काबिल भले हों, पर प्रेम की संपूर्णता को हासिल करने में नाकामयाब रहे।
रूसी कवि हालीना पोस्वीयातोवस्का एक कविता में कहती हैं- ‘मुझे पसंद है उदास रहना, रंगों और आवाजों के जंगलों पर चढ़ना, अपने खुले होंठों से सर्दी की गंध को पकड़ना’। किसी उदास रात को ही पाब्लो नेरूदा ने यह कविता लिखी होगी- ‘आज रात लिख पाऊंगा सबसे उदास कविता अपनी, क्योंकि मैंने उसे चाहा, थोड़ा उसने मुझे, इस रात की तरह थामे रहा बांहों में उसे’। उदासी को लेकर कवियों और मनोविज्ञानियों की राय के बीच संतुलन रखना चाहिए। हम प्रेम में उदास हों, पर जिंदगी में नहीं। जिंदादिली हमेशा रहनी चाहिए।