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पछता रहे हो

    बहुत कोशिशों के बावजूद काम आगे नहीं बढ़ रहा था। बस एक ही बात परेशान कर रही थी, ‘अरे, यह मैंने क्यों किया?’ हमारी जिंदगी में कुछ न कुछ ऐसा होता रहता है, जिससे हमें...

पछता रहे हो
राजीव कटाराSat, 01 Jun 2019 12:02 AM
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बहुत कोशिशों के बावजूद काम आगे नहीं बढ़ रहा था। बस एक ही बात परेशान कर रही थी, ‘अरे, यह मैंने क्यों किया?’ हमारी जिंदगी में कुछ न कुछ ऐसा होता रहता है, जिससे हमें पछतावा होता है। 
पार ब्याकब्रिंग का कहना है, ‘किसी चीज पर पछतावा होना भी हमारी बेहतरी से जुड़ना चाहिए।’ वह मशहूर साइकोलॉजिस्ट हैं। स्वीडन की गोतेनबर्ग यूनिवर्सिटी से जुडे़ हैं। उनकी चर्चित किताब है, इमोशन: रेगुलेशन ऑफ एक्सपीरिएन्स्ड ऐंड एंटीसिपेटिड रिग्रेट इन डेली डिसीजन मेकिंग।  
हमने कुछ किया और वह गलत हो गया। हम परेशान हो उठते हैं। एक किस्म का पछतावा हमें होने लगता है। उस पछतावे की वजह से हमारा काम रुक सा जाता है। हमारा मन ही नहीं होता कुछ करने का। वह पछतावा हम पर बुरी तरह हावी हो जाता है। हम कुछ गलत कर जाएंगे, तो पछतावा होगा ही। अब उस पछतावे को हमें कैसे लेना है? असल सवाल यही है। हर गलती हमारे लिए सबक होती है। हम हर गलती से कुछ सीखते ही हैं। गलती होती है, हम पछताते हैं। अगर उस गलती से सबक सीखते हुए पछतावा करते हैं, तो उससे हम आगे बढ़ जाते हैं। पछतावा करते हुए अगर हम अटक जाते हैं, तो पीछे चले जाते हैं। हम तब अपने चारों ओर दुख का सागर खड़ा कर लेते हैं। और फिर उसमें डूबने लगते हैं। और ठीक यही नहीं होना चाहिए। हर पछतावे के बाद हमें उससे बाहर आना चाहिए। खुद को ठीक करने की कोशिश करनी चाहिए। यह जेहन में रहना चाहिए कि यह डुबकी हमें कुछ बेहतर करने के लिए आई है। अगर हम खुद को बेहतर करते हैं, तो पछतावा बुरा नहीं है।  

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