अनुकंपा का भाव
जिस आदमी में मनुष्य-बोध होता है, किसी को भी कष्ट में देखकर उसका हृदय पसीज उठता है। उसके मन-प्राण आंदोलित हो उठते हैं और वह कष्ट निवारण के लिए तत्काल उपाय में जुट जाता है। यह अनुकंपा का भाव है, जिसका...
जिस आदमी में मनुष्य-बोध होता है, किसी को भी कष्ट में देखकर उसका हृदय पसीज उठता है। उसके मन-प्राण आंदोलित हो उठते हैं और वह कष्ट निवारण के लिए तत्काल उपाय में जुट जाता है। यह अनुकंपा का भाव है, जिसका आसान मतलब है दया, रहम, सहृदयता और सहानुभूति। यह जीवन की ऐसी धारा है, जो कठोर चट्टानों को तोड़कर आगे बढ़ती है और सबको त्राण देती हुई हताश-निराश जीवन में प्राण फूंकती है।
अनुकंपा जीवन का वह उत्स है, जो व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़ता है। इसी ने परिवार की रचना की है। परिवारों से समाज बना है, समाज से संसार। तुलसीदास ने तो दया को धर्म का मूल माना है। अनुकंपा से ही यह अंतर्बोध जगता है कि जैसे मेरा अस्तित्व है, वैसे सबका अस्तित्व है। जैसे मुझे सुख प्रिय है, वैसे ही सबको सुख प्रिय है। जैसे मुझे दुख अच्छा नहीं लगता, वैसे ही किसी को भी दुख पसंद नहीं है। यहीं आकर अनुकंपा बताती है कि अगर कोई पीड़ित, दुखी और असहाय अवस्था में है, तो उनके सुख के लिए हमें प्रयास करना चाहिए। कोई विपदाग्रस्त है, तो उसकी विपदा दूर करने की हरसंभव कोशिश शुरू कर देनी चाहिए। महान भाष्यकार जिनदास कहते हैं, ‘जो अपने लिए चाहते हो, वही दूसरों के लिए भी चाहना। जो अपने लिए नहीं चाहते, वह किसी और के लिए भी नहीं चाहना। यही तीर्थंकरों का उपदेश है।’ आप अगर किसी पर दया करते हैं, तो इससे सिर्फ उनका ही कल्याण नहीं होता, आप में भी प्रसन्नता की एक नई दुनिया का अवतरण होने लगता है। अपनी वेदना के अनुभवों को आधार बनाकर हेलन केलर ने लिखा था, ‘उसी का जीवन सफल है, जो किसी का दर्द कम करे।’