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सीधी सच्ची राह

चाणक्य मानते थे कि ‘संतुलित दिमाग जैसी सादगी, संतोष जैसा सुख और लोभ जैसी बीमारी दूसरी कोई नहीं है।’ कई बार आदमी सोचता है कि आटे में नमक की चुटकी जैसी मिलावट से किसी को कोई खास नुकसान नहीं...

सीधी सच्ची राह
उमा पाठकWed, 30 May 2018 09:39 PM
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चाणक्य मानते थे कि ‘संतुलित दिमाग जैसी सादगी, संतोष जैसा सुख और लोभ जैसी बीमारी दूसरी कोई नहीं है।’ कई बार आदमी सोचता है कि आटे में नमक की चुटकी जैसी मिलावट से किसी को कोई खास नुकसान नहीं होगा और मुझे लाभ मिल जाएगा। पर यहां लालच का अंत नहीं होता। धीरे-धीरे उसका बढ़ते जाना, इंसान के सहज जीवन को उलझनों से भर देता है। जब तक हम अपनी मूल प्रवृत्ति के अनुसार सहज, सामान्य जीवन जीते हैं, तब तक तो सब कुछ सुखद रहता है, पर इसके विपरीत जब व्यक्ति ईष्र्या, भौतिक समृद्धि की होड़ आदि में लग जाता है, तब रोजमर्रा के सामान्य सुख भी हाथ से फिसल जाते हैं। इसीलिए हर धर्म नकारात्मक भावों का विरोध करता है। सद्गुरु जग्गी वासुदेव का मानना है कि जीवन में हर तरह के भाव को सकारात्मक बनाया जा सकता है, क्योंकि अस्तित्व में कुछ भी सिर्फ नकारात्मक नहीं होता। जैसे बिजली पॉजिटिव- निगेटिव तारों को जोड़कर ही आती है, वैसे ही यदि इंसान अपने दुर्भाव को सद्भाव से जोड़ दे, तो लाभ उठा सकता है। 

इसका प्रमाण प्रकृति है। हर मौसम की मार को सहकर भी वह अपने सहज सौंदर्य से दैवीय सौंदर्य को साकार करती है। उसके जड़-चेतन, सभी का अलग-अलग रूप, रंगों का मिश्रण, गंध की मादकता, ध्वनियों का संगीत मन को अचरज में ही नहीं डालता, उसकी आलौकिक शक्ति के चमत्कार से रूबरू कराता है। एक चीनी कहावत है कि देवदार तूफान को अच्छा मौका मानता है, ताकि वह अपनी ताकत व स्थिरता का प्रमाण दे पाए। वह तूफान से घबराने की जगह उसमें फायदा ढूंढ़ लेता है। यही तरीका हमें भी अपनाना चाहिए।

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