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सुबह-सवेरे

सुबह-ए-बनारस उन्हें रास आ गया। सोचने लगे कि इतनी सुबह इससे पहले कब उठे थे? याद नहीं आया। भोर में उठना हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है। प्राचीन काल में हमारे जितने भी चिंतक-खोजी हुए, सभी भोर-भोर उठने...

सुबह-सवेरे
प्रवीण कुमारThu, 20 Sep 2018 11:27 PM
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सुबह-ए-बनारस उन्हें रास आ गया। सोचने लगे कि इतनी सुबह इससे पहले कब उठे थे? याद नहीं आया। भोर में उठना हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है। प्राचीन काल में हमारे जितने भी चिंतक-खोजी हुए, सभी भोर-भोर उठने वाले थे। आज भी समय के सदुपयोग और हमारी जैविक घड़ी के लिहाज से जागने का यह सबसे बेहतर समय है। पर हम इस सच्चाई को भुला बैठे हैं। 

क्रिस्टोफर बान्र्स ने इस पर गहरा अध्ययन किया है। वह कहते हैं कि सुबह जल्दी उठना, मतलब ज्यादा काम और ज्यादा आराम। बान्र्स मानते हैं कि सुबह जल्दी उठने वाले नींद का बेहतर इस्तेमाल करते हैं। वह कहते हैं कि जन्मजात तौर पर हम सभी चकवा पक्षी की तरह होते हैं, लेकिन जवानी आते-आते उल्लू हो जाते हैं और याद रखें कि उल्लू को कभी बुद्धिमता का प्रतीक नहीं माना गया। उनकी बात से ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वैज्ञानिक कैथरीना वुल्फ भी सहमत हैं। वह कहती हैं कि बाकी बात रहने दें, इतना तो तय है कि सुबह उठने से आपको ज्यादा विटामिन डी मिलता है और आपके पास काम करने का भी ज्यादा समय होता है। 

इसका आध्यात्मिक पक्ष भी है। जो सुबह उठते हैं, वे प्रकृति को ज्यादा गहराई से महसूस करते हैं। प्रसिद्ध कवि नागार्जुन कहते थे- मैंने जो सीखा और पाया, उनमें ज्यादातर उपलब्धियां सुबह टहलने से हासिल हुईं। उन्होंने एक कविता भी लिखी- सुबह-सुबह अधसूखी पतइयों का कौड़ा तापा, आम के कच्चे पत्तों का जलता, कड़ुआ कसैला सौरभ लिया, सुबह-सुबह गंवई अलाव के निकट घेरे में, बैठने-बतियाने का सुख लूटा...।  यह सुख देर से उठने वालों को शायद ही मिलता हो।

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