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हताशा के खिलाफ

वे महीनों से ठिठके से थे। हैरान-परेशान और हतप्रभ! जो सोचा न था, वह हो गया। ऐसा होता है। हर एक के जीवन में। कुछ को तो कई-कई बार इसका सामना करना पड़ता है। ऐसे में, जरूरत होती है खुद को तैयार कर फिर से...

हताशा के खिलाफ
नीरज कुमार तिवारीWed, 20 Jun 2018 10:25 PM
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वे महीनों से ठिठके से थे। हैरान-परेशान और हतप्रभ! जो सोचा न था, वह हो गया। ऐसा होता है। हर एक के जीवन में। कुछ को तो कई-कई बार इसका सामना करना पड़ता है। ऐसे में, जरूरत होती है खुद को तैयार कर फिर से निशाना साधने की। जो सोचा था, उसे हासिल करने की। जो हालात के आगे घुटने टेक देते हैं, वे हेलेन केलर को पढ़ें। वे नेत्रहीन और बधिर थी। वे इन हालात में कला स्नातक की उपाधि लेने वाली पहली अमेरिकी बनीं। हेलन ने अपने बारे में कहा- ‘सचमुच मैंने अंधकार की अथाह गहनता देखी है, परंतु उसके सन्न कर देने वाले प्रभाव को अपने ऊपर कभी हावी होने नहीं दिया। मैं मानसिक रूप से उन लोगों के पास हूं, जिनके कदमों में सदा सुबह बिछी रहती है।’ हताश लोगों को लगता है, जैसे प्रकृति भी उनके खिलाफ साजिश में जुटी है, जबकि होता है इसके उलट। यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन के वैज्ञानिक तालि सरोत ने अपने अध्ययन से यह साबित किया कि मस्तिष्क में वह ताकत है, जिसके जरिए वह भविष्य की अच्छी खबरों को पढ़ सकता है। वह कहती हैं कि हमारे भीतर वह ताकत मौजूद होती है, जो हमें हताशा से उबरने में मदद करती है, बशर्ते हम घुटने न टेकें। हताशा घेर ले, तो क्या करें? सरोत कहते हैं कि हताशा में छिपी अदृश्य आशा के सूत्र पकड़ने की कोशिश करें। ये आपके भीतर ही हैं। बस इसके धागे थोड़े महीन हैं। अमेरिकी मनोवैज्ञानिक ब्रायन बोनर के शब्दों में, हताशा यह सोच लेकर आती है कि जिंदगी ने उनके साथ नाइंसाफी की है, जबकि जिंदगी कभी नाइंसाफी नहीं करती। ऐसा हम करते हैं, अपनी ताकत को अनदेखा करके।

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