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उम्र के पार

‘हर काम करने की एक उम्र होती है।’ यह एक ऐसी झूठी बात है, जो सच की तरह हमारे मन में बैठी है। हम चालीस की उम्र जाते-जाते सोचने लगते हैं कि अब तो चूक गए। अब कुछ नया नहीं कर सकते, जबकि ऐसे...

उम्र के पार
नीरज कुमार तिवारीWed, 12 Jun 2019 10:39 PM
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‘हर काम करने की एक उम्र होती है।’ यह एक ऐसी झूठी बात है, जो सच की तरह हमारे मन में बैठी है। हम चालीस की उम्र जाते-जाते सोचने लगते हैं कि अब तो चूक गए। अब कुछ नया नहीं कर सकते, जबकि ऐसे लोग हमारे आसपास भी थोड़ी खोज के बाद मिल जाते हैं, जो अपनी उम्र को बस आंकड़े की तरह जीते हैं। ये अपने काम के प्रति इतने उत्साही होते हैं कि उम्र पर गौर नहीं करते। जैसे फ्रैंक मैक्कोर्ट ने जिंदगी में कई काम किए, टेलीग्राम डिलिवरी से पढ़ाने तक। कामयाबी नहीं मिली। इसके बाद उन्होंने 66 साल की उम्र में एक किताब लिखी-एंगेलाज एशेज। यह इतनी चर्चित हुई कि इसकी 50 लाख प्रतियां बिक गईं। उन्हें साहित्य का पुलित्जर पुरस्कार भी मिला। मैक्कोर्ट ने कहा- मेरी उम्र के आखिरी दिन भी जो सूरज उगेगा, वह मुझसे उतनी ही उम्मीद रखेगा, जैसे उसने मेरी उम्र के पहले दिन रखा था, फिर मैं क्यों उसकी उम्मीद तोड़ूं?

जॉर्ज बर्नार्ड शॉ कहते हैं- ‘हम इसलिए खेलना नहीं छोड़ देते कि हम बूढ़े हो जाते हैं, बल्कि हम इसलिए बूढे़ हो जाते हैं, क्योंकि हम खेलना छोड़ देते हैं। अगर हम मानते हैं कि कोई भी नया काम युवावस्था में ही शुरू किया जाना चाहिए, तो यह भी मानना चाहिए कि युवा किसी आयु या अवस्था का नाम नहीं, बल्कि ऊर्जा का नाम है। जिसने अपने मन और आत्मा की ऊर्जा को जगा लिया, वह युवा है, भले ही उम्र कुछ भी हो। जापान के हिडकिची मियाजाकी ने 42 सेकंड में जब 100 मीटर की दौड़ का कीर्तिमान बनाया, तो उन्हें उसेन बोल्ट ने भी सलाम किया। उस समय हिडकिची की उम्र 105 साल थी और वह पदक पाकर बच्चों जैसे उछल रहे थे।

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