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हर काम आसान है

मनसा, वाचा, कर्मणा यानी मन, वचन और कर्म भारतीय संस्कृति के संस्कार और संकल्प का परिचय देते हैं। ये तीन शब्द मूल्यवान हैं। हमारे देश में तीन की बड़ी महिमा रही है। परमेश्वर के रूप में ब्रह्मा, विष्णु,...

हर काम आसान है
 महेंद्र मधुकरMon, 02 Sep 2019 11:45 PM
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मनसा, वाचा, कर्मणा यानी मन, वचन और कर्म भारतीय संस्कृति के संस्कार और संकल्प का परिचय देते हैं। ये तीन शब्द मूल्यवान हैं। हमारे देश में तीन की बड़ी महिमा रही है। परमेश्वर के रूप में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, गुण के रूप में सात्विक, राजसिक और तामसिक और सेवा के अर्थ में वित्तजा, तनुजा और मनसा सेवा प्रसिद्ध हैं। ताप और दुख को तुलसी ने दैहिक, दैविक और भौतिक कहा है। देवताओं में शिव और शिवा को त्रिनयन के रूप में पूजा गया। लामाओं के यहां भी ‘द थर्ड आई’ का विशेष महत्व है। इस दृष्टिकोण से यह स्पष्ट है कि तीन भागों में किया गया वितरण कहने के लिए भले अलग हो, अपना खास अर्थ रखता हो, लेकिन ये सब एक-दूसरे के पूरक और सहयोगी हैं।

 यही बात मन, वचन और कर्म के क्षेत्र में भी लागू होती है। अकेला मन ‘उड़न तश्तरी’ की तरह सर्व तंत्र, स्वतंत्र और निरंकुश हो जाता है। इसी प्रकार केवल वचन वाणी का विलास, केवल शब्द- व्यापार और केवल बातों का पुलिंदा बनकर रह जाता है। इसी प्रकार केवल निरुद्देश्य कर्म फलदायक नहीं होता। कोल्हू के बैल की तरह केवल चक्कर काटने से यात्रा का लक्ष्य नहीं मिलता। इसलिए ये तीनों बातें जरूरी हैं। मन की इच्छाशक्ति, वचन का सत्य और कठिन कर्म करने की प्रेरणा और ऊर्जा से संसार का कोई भी काम मुश्किल नहीं लगता। गीता  का स्पष्ट निर्देश है कि कर्म का अधिकार है, पर हमें उसके फल की कामना नहीं करनी है- मा फलेषु कदाचन।  मन, वचन और कर्म हमारी एकत्र सम्मिलित शक्तियां हैं, जिनके मिलने से ही हम पूर्ण मानव बनते हैं। 

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