काम का पहाड़
कभी-कभी हम अपने काम का जरूरत से ज्यादा दबाव ले लेते हैं। काम से पहले हजार तरह के डर सताते रहते हैं। बाद में हमें लगता है कि हम तो बिना वजह ही घबरा रहे थे। कई बार तो काम से पहले की अव्यवस्था देखकर...
कभी-कभी हम अपने काम का जरूरत से ज्यादा दबाव ले लेते हैं। काम से पहले हजार तरह के डर सताते रहते हैं। बाद में हमें लगता है कि हम तो बिना वजह ही घबरा रहे थे। कई बार तो काम से पहले की अव्यवस्था देखकर लगता है कि हमारा काम किसी भी हालत में सफल नहीं होगा। लेकिन जब वह सफल हो जाता है, तो लगता है कि शायद किसी जादू की छड़ी से ही यह हो सका है। काम के प्रति यह चिंता और इस चिंता के चलते काम पूरा करने का प्रयास ही हमारे लिए जादू की छड़ी बन जाते हैं। इस प्रक्रिया के पीछे कई तरह के मनोवैज्ञानिक कारक काम करते हैं।
कई बार हम आशंकाओं में जीते हैं। हमारा अधिकारी या कोई अन्य वरिष्ठ कर्मी जब हमें कोई काम सौंपता है, तो उसकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए बरती गई सतर्कता हमारे ऊपर एक दबाव बनाती है। हमारे प्रतिद्वंद्वी भी हमें लगातार पीछे धकेलने की कोशिश करते हैं। इन लोगों का व्यवहार भी हमारे ऊपर एक मनोवैज्ञानिक दबाव बनाता है। इन सब दबावों से जूझते हुए जब हम किसी काम को पूरा करने की प्रक्रिया का हिस्सा बनते हैं, तो हमें वह काम पहाड़ लगने लगता है। इस पहाड़ को फतह करने के लिए हम अपने प्रयास जारी रखते हैं और हमारा काम सफल हो जाता है।
यह आत्म-संतुष्टि पिछले सारे दबावों पर भारी पड़ती है। एक काम खत्म होता है, तो दूसरा काम हमारी देहरी पर आ खड़ा होता है। शायद इन्हीं कामों की वजह से हमारी जिंदगी का अर्थ भी है। जब कोई काम हमारे लिए एक चुनौती बन जाता है, तो उसे पूरा करने में मजा भी खूब आने लगता है।