सेहत और सेवा
बेचैनी की वजह से वह कमरे में इधर-उधर घूम रहे हैं। हमेशा खुद को सभी तरह की कुंठाओं, परेशानियों और मुसीबतों को बिना घबराहट के हंसते हुए दिमागी बोझ से बाहर निकलने वाला इंसान आज इतना असहज? नौकरी इतनी...
बेचैनी की वजह से वह कमरे में इधर-उधर घूम रहे हैं। हमेशा खुद को सभी तरह की कुंठाओं, परेशानियों और मुसीबतों को बिना घबराहट के हंसते हुए दिमागी बोझ से बाहर निकलने वाला इंसान आज इतना असहज? नौकरी इतनी कर्तव्यनिष्ठा से की कि सारा विभाग उनकी मुक्तकंठ से तारीफ करते नहीं थकता था। वह जिस पद से अवकाश लिए, वह अत्यंत जिम्मेदारियों वाला था, लेकिन उन जिम्मेदारियों को जिस ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा से निभाया, वह दूसरों के लिए नजीर बन गया। वह कहा करते हैं, आठ घंटे की जिम्मेदारी निभाई तो क्या निभाई, कुछ बड़ा करें, तभी जिंदगी जीने का मजा है। शायद उनकी बेचैनी समाज के हालात को देखकर है। लेकिन वह इसे जगजाहिर नहीं करते। वह उन लोगों में हैं, जो परेशानियों से नहीं घबराते।
मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, जो इंसान भावनात्मक स्तर पर बहुत ज्यादा संवेदनशील होता है, वह हालात के मुताबिक यदि खुद को ढाल नहीं पाता, तो वह कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याओं से ग्रस्त भी हो सकता है। इसलिए कहा जाता है कि अपनी व्यथा, पीड़ा और दुख दूसरों से बांटते रहना चाहिए। इससे अंदर के सारे अंग सहज बने रहते हैं। अंदर की सहजता ही बाहर की सारी कवायदों को निर्धारित करती है। अंदर की सहजता अंदर से स्वच्छ और मजबूत भी बनाती है। अंदर की सहजता की धारा को टूटने नहीं देना चाहिए। अंदर से टूटना मौत से भी अधिक दुखदायी होता है। समाज के दुख को अपना दुख जरूर समझना चाहिए, लेकिन ध्यान रखना चाहिए कि कहीं इससे सेहत पर खतरा तो नहीं बढ़ रहा है। जीवन है, तभी दुख और समाजसेवा है।