फोटो गैलरी

थोड़ा आराम कर लो

मीटिंग चल रही थी। अचानक बॉस मुखातिब हुए, ‘तुम कुछ नहीं बोल रहे। कोई नया आइडिया नहीं आ रहा। बहुत थके-थके लग रहे हो।’ काम और आराम का एक रिश्ता होता है। शायद इसीलिए डॉ. एलेक्स पैंग का मानना...

थोड़ा आराम कर लो
राजीव कटाराFri, 07 Jun 2019 10:05 PM
ऐप पर पढ़ें

मीटिंग चल रही थी। अचानक बॉस मुखातिब हुए, ‘तुम कुछ नहीं बोल रहे। कोई नया आइडिया नहीं आ रहा। बहुत थके-थके लग रहे हो।’ काम और आराम का एक रिश्ता होता है। शायद इसीलिए डॉ. एलेक्स पैंग का मानना है, ‘काम और आराम में कोई दुश्मनी नहीं है। ठीक से आराम करना काम की रफ्तार को बढ़ा देता है।’ वह मशहूर साइकोलॉजिस्ट हैं। स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर हैं। उनकी चर्चित किताब है, रेस्ट : व्हाई यू गेट मोर डन व्हेन यू वर्क लेस।

हम काम करते हैं। उसके बिना हम जी नहीं सकते। लेकिन काम करते हुए हम कभी इतने डूब जाते हैं कि कुछ जरूरी चीजें छूट जाती हैं। देर-सवेर उनका असर हम पर ही होता है। धीरे-धीरे हमारा शरीर थकने लगता है। फिर मन भी कब तक नहीं थकेगा! अति हर चीज की बुरी होती है। हम अपने तन-मन से ज्यादती करेंगे, तो उसका खामियाजा भी हमीं भुगतेंगे। हम थकान के शिकार हो जाएंगे। कभी-कभी हम अपने को खींच-खांचकर कुछ ज्यादा काम कर डालते हैं। लेकिन यह खींच-खांच बहुत दूर तक नहीं जानी चाहिए। हमें अपने को थकान से बचाना ही होगा।

काम को गंभीरता से लेना या खूब मेहनत करने का यह मतलब नहीं कि थकान मोल ले लें। और चुकने लगें। काम और आराम के बीच एक तालमेल जरूरी है। अगर वह नहीं होगा, तो काम पर भी उसका असर पडे़गा ही। बहुत ज्यादा काम में खुद को खपाने से हम ढर्राई काम तो कर सकते हैं, लेकिन काम में नयापन नहीं ला सकते। अगर हम अपने काम को गंभीरता से लेते हैं, तो अपने आराम को भी उतनी ही गंभीरता से लेना चाहिए।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें