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सहने का अभ्यास

मौसम परिवर्तनशील है। अपने साथ कठोर और कोमल, दोनों तरह की अनुभूतियां कराता है। कोमल अनुभूतियां आनंददायी होती हैं, जबकि कठोर अनुभूतियों को सहन करना पड़ता है। बाह्य या प्राकृतिक उपादानों पर हमारा कोई वश...

सहने का अभ्यास
 कविता विकासWed, 26 Jun 2019 12:07 AM
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मौसम परिवर्तनशील है। अपने साथ कठोर और कोमल, दोनों तरह की अनुभूतियां कराता है। कोमल अनुभूतियां आनंददायी होती हैं, जबकि कठोर अनुभूतियों को सहन करना पड़ता है। बाह्य या प्राकृतिक उपादानों पर हमारा कोई वश नहीं। इन्हें हम चाहकर भी अपने अनुकूल नहीं बना सकते। आदर्श व्यक्तित्व के निर्माण के लिए जिन तत्वों की आवश्यकता होती है, उनमें सहनशीलता भी एक है। परोपकार, दया, सदाचार और अनुशासन के साथ यदि सहनशीलता का भी समावेश हो, तो क्या कहने? बड़े-बुजुर्गों की वाणी, अबोध बालकों की बोली या मानसिक रूप से विकलांग लोगों के शब्द कर्णप्रिय न हों, तब भी सहने की प्रवृत्ति रखनी चाहिए। 

कई बार हम किसी मजबूरी में किसी के कटु वचन या व्यवहार को सहते रहते हैं। हमें यह डर होता है कि हमारा प्रत्युत्तर किसी अप्रिय घटना को न जन्म दे दे। पर ऐसी स्थिति में सहने की एक सीमा होती है। जब यह सीमा टूटने के कगार पर हो, तो धैर्य भी टूट जाता है। आधुनिक युग में रिश्तों में दरारें पैदा होने और हिंसा में वृद्धि होने के कारकों में सहनशीलता का अभाव ही है। प्राय: यह देखा जाता है कि जिन्हें हम चाहते हैं, उनके कुकर्म या कठोर वाणी को भी सह जाते हैं। जिनके साथ संबंध अच्छा नहीं होता है, उनकी अच्छी वाणी भी बुरी प्रतीत होती है। इन्हीं जगहों पर सहनशीलता की जरूरत है, यही हमारे आदर्श चरित्र को गढ़ने में सहायक होता है। कभी ऋषि-मुनि नंगे बदन तपस्या में लीन रहते थे, ताकि वे मौसम के कठोर प्रहार को सह सकें। भीषण गरमी और कंपकंपाती सर्दी में देह की सहनशीलता की परीक्षा देते थे। यह बताता है कि सहनशीलता भी अभ्यास की एक चीज है।

 

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