शरीर एकमात्र उपहार
किसी व्यक्ति के भौतिक सृजन का सबसे अभिन्न अंग उसका अपना शरीर ही होता है। यही वह पहला उपहार है, जिसका एहसास उसे सबसे पहले होता है। हालांकि, शरीर पहला ही नहीं, बल्कि एकमात्र उपहार है। योग विज्ञान...
किसी व्यक्ति के भौतिक सृजन का सबसे अभिन्न अंग उसका अपना शरीर ही होता है। यही वह पहला उपहार है, जिसका एहसास उसे सबसे पहले होता है। हालांकि, शरीर पहला ही नहीं, बल्कि एकमात्र उपहार है। योग विज्ञान में मन या आत्मा जैसी कोई चीज नहीं होती। स्थूल से सूक्ष्म तक, सब कुछ विभिन्न आयामों में उसी शरीर की अभिव्यक्तियां हैं।
शरीर के पांच आवरण या आयाम होते हैं। इनके बारे में हम फिर बात करेंगे। फिलहाल हम भौतिक शरीर की बात करेंगे। इसे ऐसे बनाया गया है कि यह आपकी भागीदारी के बिना भी काम करता रहता है। आपको हृदय धड़काना नहीं पड़ता। लिवर की सारी जटिल रासायनिक क्रियाएं चलानी नहीं पड़तीं या सांस लेने की कोशिश भी नहीं करनी पड़ती है। आपके भौतिक जीवन को बनाए रखने के लिए जो कुछ आवश्यक है, वह सब खुद-ब-खुद ही होता रहता है।
भौतिक शरीर एक संपूर्ण यंत्र है, जो आत्मनिर्भर होता है। यदि आपको मशीनों से बहुत लगाव है, तो आपके लिए इससे अधिक दिलचस्प मशीन कोई और नहीं है। इस शरीर के विषय में आप जिन छोटी-मोटी बातों को जानते हैं, वे बहुत अविश्वसनीय होती हैं। इस धरती पर मानव शरीर सबसे जटिल किस्म का यंत्र है। यह उस यांत्रिकी का चरम स्तर है, जिसकी आपने शायद ही कभी कल्पना की होगी। यह उस इलेक्ट्रॉनिक उपकरण का सर्वोत्कृष्ट रूप है, जिसके बारे में आपने कभी सोचा न होगा। यह ऐसे विद्युतीय संपर्क का सर्वश्रेष्ठ स्तर है, जो आपने सपने में भी संभवत: नहीं सोचा होगा। यह हिसाब करने की क्षमता का सर्वोत्तम रूप है, जिसका विचार कभी आपके मन में शायद ही आया होगा।
चलिए मान लेते हैं कि आपने दोपहर में एक केला खाया। शाम तक, यह केला आपका रूप ले लेता है। डार्विन ने आपको बताया था कि एक बंदर को इंसान बनने में लाखों साल लग गए, लेकिन आपने कुछ ही घंटे में एक केले को इंसान बना दिया! यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। इसका अर्थ यह हुआ कि सृष्टि का वह स्रोत आपके अंदर लगातार कार्य कर रहा है।
आपके अंदर एक खास स्तर की बुद्धि और क्षमता है। यह आपके अंदर है। यह आपकी तर्कशक्ति से भी परे होती है, जो एक केले को एक ऐसी वस्तु में बदल देती है। यह तकनीक के हिसाब से श्रेष्ठ है। यही तो योग है- उस आयाम, उस बुद्धि, उस क्षमता तक पहुंच पाना, जो एक केले को कुछ ही घंटे में एक इंसान में बदल दे। अगर आप उस रूपांतरण को अचेतन के बजाय चेतन रूप में प्राप्त कर लेते हैं, यदि अपने दैनिक जीवन में उस बुद्धि का एक छोटा-सा अंश भी ले आते हैं, तो आपका जीवन दुख-दर्द भरा नहीं, बल्कि चमत्कारिक बन सकता है।
सद्गुरु जग्गी वासुदेव