राष्ट्रवाद कैसे विदा होगा
सवाल आया है कि राष्ट्रवाद के विदा हो जाने पर क्या होता है? तब प्रज्ञा आती है। परंतु मुझे लगता है कि इस प्रश्न का निहितार्थ यह नहीं है। इसका तात्पर्य है, राष्ट्रवाद का विकल्प क्या हो सकता है? विकल्प...
सवाल आया है कि राष्ट्रवाद के विदा हो जाने पर क्या होता है? तब प्रज्ञा आती है। परंतु मुझे लगता है कि इस प्रश्न का निहितार्थ यह नहीं है। इसका तात्पर्य है, राष्ट्रवाद का विकल्प क्या हो सकता है? विकल्प खोजने की कोई भी प्रक्रिया प्रज्ञा नहीं ला सकती। यदि मैं एक धर्म छोड़कर दूसरा स्वीकार कर लूं, एक पार्टी का परित्याग कर दूसरे में शामिल हो जाऊं, तो इसमें प्रज्ञा नहीं है।
राष्ट्रवाद कैसे विदा होगा? केवल तभी, जब हम उसकी परीक्षा करके बाह्य और आंतरिक क्रियाओं में उसके महत्व के प्रति जागरूक होकर उसके तमाम निहितार्थों को समझ लेंगे। बाह्य रूप से राष्ट्रवाद लोगों को वर्गों, श्रेणियों में विभाजित करता है, युद्ध और विनाश लाता है और इस बात से हर जागरूक व्यक्ति परिचित है। भीतरी तौर पर, मानसिक रूप से किसी महान तत्व, किसी देश, किसी धारणा से अपना तादात्म्य कर लेना आत्म-विस्तार का ही एक तरीका है। किसी छोटे से गांव में या बड़े शहर में, जहां कहीं मैं रहता हूं, वहां मेरी कोई गिनती नहीं होती; परंतु यदि मैं किसी बड़ी वस्तु, देश के साथ जुड़ जाता हूं, खुद को हिंदू, मुस्लिम, सिख या ईसाई कहता हूं, तो मेरे अहंकार को गौरव मिलता है, इससे मुझे तुष्टि, प्रतिष्ठा और खुशदिली का एहसास होता है।
किसी बड़ी चीज के साथ तादात्म्य कर लेना उन लोगों की एक मनोवैज्ञानिक जरूरत है, जो यह महसूस करते हैं कि आत्म-विस्तार जरूरी है और इससे लोगों के बीच द्वंद्व व संघर्ष का जन्म होता है। अत: राष्ट्रवाद से न केवल बाहरी द्वंद्व उभरता है, बल्कि आंतरिक कुंठाएं भी पनपती हैं। जब कोई व्यक्ति राष्ट्रवाद की समस्त प्रक्रिया को समझ लेता है, तब इसका उन्मूलन हो जाता है। तब इसके स्थान पर किसी विकल्प को लाने की आवश्यकता नहीं रह जाती। क्योंकि जैसे ही आप विकल्प के रूप में किसी दूसरी बात को स्वीकार करते हैं, तो यह आत्म-विस्तार का एक और साधन बन जाता है, आप किसी विश्वास के जरिये अपने को पोषित करने लगते हैं। अत: किसी भी प्रकार का विकल्प, चाहे वह जितना आदर्शपूर्ण हो, अज्ञान का ही एक रूप है। यह तो वही बात हुई, जैसे कोई व्यक्ति धूम्रपान की जगह चूसने वाली गोली, सुपारी अथवा ऐसे ही किसी अन्य पदार्थ का उपयोग करने लगे: लेकिन यदि कोई व्यक्ति धूम्रपान की सारी समस्या को, इसकी आदत के स्वरूप को, ऐंद्रिक अनुभूतियों को और तमाम मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं को वस्तुत: समझने लगे, तो धूम्रपान अपने आप छूट जाएगा।
राष्ट्रवाद अपने विषैलेपन व दुनिया में जारी झगड़ों समेत तभी समाप्त हो सकता है, जब प्रज्ञा विद्यमान हो और प्रज्ञा सिर्फ परीक्षाएं पास करने अथवा पुस्तकों के अध्ययन से नहीं आती। प्रज्ञा तब आती है, जब समस्याओं के उपजते ही उनको समझ लिया जाता है।
जे कृष्णमूर्ति