अपनी जड़ों से शक्ति पाएं
संगीत, कला और कविता, सब मिलाकर आत्मा के लिए एक पूर्ण शिक्षा है। ये शक्तियां उसकी गतिविधियों को पवित्र, आत्म-नियंत्रित, गहरी और सामंजस्यपूर्ण बनाती हैं और वैसा ही रखती हैं। अत: आगे बढ़ने वाली मानवता...
संगीत, कला और कविता, सब मिलाकर आत्मा के लिए एक पूर्ण शिक्षा है। ये शक्तियां उसकी गतिविधियों को पवित्र, आत्म-नियंत्रित, गहरी और सामंजस्यपूर्ण बनाती हैं और वैसा ही रखती हैं। अत: आगे बढ़ने वाली मानवता उन्हें उपेक्षित नहीं कर सकती और न ही वह उन्हें केवल ऐंद्रिक सुख की संतुष्टि के स्तर पर गिरा सकती है। इससे चरित्र का निर्माण न होकर विघटन हो जाएगा। सही ढंग से उपयोग में लाए जाने पर ये महान शिक्षाप्रद, नैतिक विकास करने वाली और सभ्य बनाने वाली शक्तियां हैं।
जो शिक्षा-व्यवस्था कलात्मक प्रशिक्षण को कुछ विशेषज्ञों के प्राधिकार के रूप में अलग रखने के बजाय उसे संस्कृति के एक भाग के रूप में साहित्य और विज्ञान से कम आवश्यक न मानकर उसका समावेश करती है, तो समझिए, उसने अपनी शिक्षा को पूर्णता प्रदान करने और एक व्यापक आधार वाली मानव संस्कृति के प्रसार की दिशा में बड़ा कदम बढ़ा लिया है। यह आवश्यक नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति कलाकार हो, आवश्यक यह है कि हर व्यक्ति की कलात्मक क्षमता विकसित हो, उसकी अभिरुचि प्रशिक्षित हो और उसके सौंदर्य-बोध और रूप-रंग में उसकी अंतर्दृष्टि संवेदनशील हो। यह आवश्यक है कि लोग जो सृजन करते हैं, वह कुरूप के स्थान पर सुंदर हो, अभद्र के स्थान पर गौरवपूर्ण हो, भड़कीले के स्थान पर समरस हो। ऐसा राष्ट्र, जो नित्य—प्रति सुंदर, गौरवपूर्ण, परिष्कृत और समरस वस्तुओं से घिरा रहता है, वह वही बन जाता है, जिसका चिंतन करने का वह आदी होता है और स्वयं अपने में विस्तारशील आत्मा की पूर्णता को प्राप्त कर लेता है।
भारत में वास्तविक राष्ट्रीय कला का पुनरुत्थान अब एक यथार्थ तथ्य बन चुका है और इस स्कूल की उत्कृष्ट कृतियां तुलना में अन्य देशों की उत्कृष्ट कृतियों को चुनौती दे सकती हैं। ऐसी परिस्थितियों में यह अक्षम्य है कि इंग्लिश स्कूलों की भद्दी औपचारिक पढ़ाई, पश्चिम के अभद्र उद्देश्य व तरीके हमारे बीच कायम रहें।
देश को अभी भी शिक्षा की ऐसी व्यवस्था विकसित करनी है, जो यथार्थ में राष्ट्रीय हो। पाश्चात्य आदर्शों और अनुपयुक्त प्रणालियों के कलंक को हमें अपने मस्तिष्क से निकाल बाहर करना होगा। अपनी शिक्षा इस बौद्धिक और कलात्मक पुनर्निर्माण की नींव होनी चाहिए। हमें प्राचीन भारतीय कला की भावना को पुनर्जागृत करना चाहिए; दृष्टि की प्रेरणा और प्रत्यक्षता, जो प्राचीन परंपराओं को जीवित रखने वालों में अभी भी विद्यमान है; भारतीय हाथ की कारीगरी और अंतर्बोध संपन्न भारतीय आंख की पैनी पकड़, इन सभी को पुन: प्राप्त करके संपूर्ण राष्ट्र को प्राचीन संस्कृति के ऊंचे स्तर तक फिर से उठाना होगा, बल्कि उससे भी ऊपर।
श्री अरविंद