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लकीर के फकीर

पहले एक प्रसंग। एक कमान अधिकारी अपने नए भर्ती लड़ाकों से पूछ रहा था कि बंदूक में लकड़ी के बने निचले हिस्से को, जिसे बट कहा जाता है, बनाने में अखरोट की लकड़ी का ही उपयोग क्यों किया जाता है? एक जवान ने...

लकीर के फकीर
प्रवीण कुमारWed, 28 Oct 2020 11:07 PM
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पहले एक प्रसंग। एक कमान अधिकारी अपने नए भर्ती लड़ाकों से पूछ रहा था कि बंदूक में लकड़ी के बने निचले हिस्से को, जिसे बट कहा जाता है, बनाने में अखरोट की लकड़ी का ही उपयोग क्यों किया जाता है? एक जवान ने कहा, क्योंकि यह लकड़ी जल्दी टूटती नहीं है। दूसरे का उत्तर था, यह अपेक्षाकृत अधिक लचीली लकड़ी होती है। अधिकारी ने दोनों को गलत बताया, तो तीसरे जवान ने कहा, क्योंकि दूसरी लकड़ियों की तुलना में इसमें अधिक चमक होती है। अधिकारी ने कहा, बेवकूफों जैसी बातें नहीं करो, ऐसा सिर्फ इसलिए कि फौज के नियम-कायदों में ऐसा ही लिखा है।
इस प्रसंग को हम अक्सर जीते हैं। बिना सोचे-समझे या फिर एक पूर्वधारणा के आधार पर जीते चले जाते हैं। सामने वाला हमें लकीर का फकीर बनाए रखना चाहता है, और हम भी उसकी सोच पर जीना पसंद करने लगते हैं। दरअसल, अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने के लिए केवल रोशनी की जरूरत नहीं होती। अगर जाने वाले में आत्मविश्वास ही न हो और वह नियतिवादी हो, तो वह अंधकार को ही अपनी नियति मान लेगा। ये बातें हम मिथकों और सच्ची कथाओं से भी समझ सकते हैं। रामायण में जामवंत द्वारा कराए गए आत्म-साक्षात्कार के बाद ही हनुमान में आत्म-विश्वास जगा और समुद्र लांघने में उन्होंने सफलता पाई। एक कहावत है कि हम घोड़े को पानी के पास ले जा सकते हैं, पानी पिला नहीं सकते। पानी पीने की ताकत और इसे लेकर जागृति खुद के भीतर होनी चाहिए। और यह तभी संभव है, जब हम लकीर के फकीर न बनें, और आत्म-जागरण से संचालित हों, किसी दूसरों के विचारों से नहीं।
 

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