डर की कभी मत सुनिए
पिछले दिनों मेरे पास एक ई-मेल आया, जिसमें यह दर्ज था कि ‘मेरा एक बड़ा सपना है, जिसे मैं पूरा करना चाहता हूं, लेकिन बात यह है कि... मैं डरा हुआ हूं। भय मुझे रोक रहा है। मेरा दिल इस सपने में है और अगर...
पिछले दिनों मेरे पास एक ई-मेल आया, जिसमें यह दर्ज था कि ‘मेरा एक बड़ा सपना है, जिसे मैं पूरा करना चाहता हूं, लेकिन बात यह है कि... मैं डरा हुआ हूं। भय मुझे रोक रहा है। मेरा दिल इस सपने में है और अगर मैं टालता रहा, तो इसे कभी हासिल नहीं कर पाऊंगा। मुझे क्या करना चाहिए?’
दरअसल, आपका डर आपको बता रहा है कि यदि आप कार्य करते हैं, तो आप असफल हो जाएंगे या निर्ममता से आपको आंका जाएगा। इसलिए आप सोचते हैं कि सपने की दिशा में कदम उठाने से बचकर विफलता और अस्वीकृति की पीड़ा से बचना बेहतर है। मगर सच तो यह है कि आप नहीं जानते कि भविष्य क्या होगा और आपका डर आपसे झूठ बोल रहा है कि वह भविष्य जानता है! आपके लिए यही जानना अपने आप में पर्याप्त होना चाहिए कि डर कभी एक विश्वसनीय मार्गदर्शक नहीं होता, खासकर तब, जब बात अपने सपनों को साकार करने की हो।
दूसरे, उस चिंता, बेचैनी और भावनात्मक उथल-पुथल पर विचार कीजिए, जिसमें डर की यह स्थिति आपको बनाए रखती है। गौर कीजिए, इसने आपको तकलीफ से कतई नहीं बचाया है। भविष्य के कथित कष्ट से बचने में मदद करने के बजाय इसने आपको वर्तमान में गतिहीन बना दिया है। इस बात से ही आपको यह पता चल जाना चाहिए कि डर की सुनना हमेशा बुरी सलाह होती है। स्वीकार कीजिए कि आप वास्तव में नहीं जानते, आपका आगे का रास्ता क्या होगा, मगर आप यह अवश्य जानते हैं कि आपका वर्तमान क्या है, इसलिए भविष्य से बेखौफ होकर आगे बढ़िए!
दीपक चोपड़ा