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अपेक्षाओं का बोझ  

हम सब अपेक्षाएं लेकर जीते हैं, लेकिन अपेक्षाओं का एक स्वभाव है : अगर वे पूरी नहीं होतीं, तो आपको निराशा होगी और अगर पूरी होती हैं, तो ऊब पैदा होगी। अगर आपकी अपेक्षाएं शत-प्रतिशत पूरी हुईं, तो आप ऐसे...

अपेक्षाओं का बोझ  
 अमृत साधनाSun, 24 May 2020 08:39 PM
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हम सब अपेक्षाएं लेकर जीते हैं, लेकिन अपेक्षाओं का एक स्वभाव है : अगर वे पूरी नहीं होतीं, तो आपको निराशा होगी और अगर पूरी होती हैं, तो ऊब पैदा होगी। अगर आपकी अपेक्षाएं शत-प्रतिशत पूरी हुईं, तो आप ऐसे जिएंगे, मानो आप अतीत में जी रहे हैं, भविष्य में नहीं। जैसे हर रोज आप घर आते हैं और पत्नी ने वही कहा, जिसकी आपको अपेक्षा थी, और बच्चों ने वही किया, जो आप जानते थे, तो आपको खुशी नहीं होगी। जिंदगी घिसी-पिटी लगेगी। जीवन में रोमांच पैदा करने के लिए सतत नया, अभिनव, कुछ मौलिक घटना चाहिए। लेकिन अपेक्षाओं का बोझ लेकर नयापन कहां से आएगा? आपने तो नए का द्वार ही बंद कर दिया है।  
यदि आप हमेशा प्रसन्न रहना चाहते हैं, तो भविष्य से कोई अपेक्षा मत रखिए। अपेक्षाएं भविष्य को प्रदूषित करती हैं। अपेक्षा हमेशा दूर कहीं देखती है। इसलिए वह आनंद नहीं लाती। आनंद तब होता है, जब आप आश्चर्य से भर जाएं। जब कुछ ऐसी घटना घटे, जिसकी आपने अपेक्षा न की हो, तब आनंद प्रगट होता है। जिस जीवन शैली में आश्चर्य के लिए जगह नहीं, वह यंत्रवत होती है। ओशो का सुझाव है कि अपनी अपेक्षाओं पर ध्यान करें। आज तक आपने जो-जो अपेक्षाएं की हैं और उनके जो परिणाम हुए हैं, उन्हें मन की आंखों से देखें, मानो अपनी ही जिंदगी की फिल्म देख रहे हैं। जिसे पाकर भी कुछ नहीं मिलता और न पाने से दुख होता है, ऐसी भाव दशा को ढोने से क्या लाभ? एक बार यह साफ दिखाई दे, तो तुरंत आप अपेक्षाओं की व्यर्थता को समझ जाएंगे, और वे छूट जाएंगी। अपेक्षा न रही, तो जीवन में  इतना रोमांच आएगा कि आप सोच भी नहीं सकते।
 

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